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________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...97 आगम-साहित्य में ऊनोदरिका तप पाँच प्रकार का बतलाया गया है अप्पाहारा अवड्डा, दुभाग पत्ता तहेवा देसूणा । अट्ठ दुवालस सोलस, चउवीस तहिक्कतीसा य ।। (i) अल्पाहारा (ii) अपार्धा (iii) द्विभागा (iv) प्राप्ता (v) किंचिदूना। यह पंचविध ऊनोदरी तप द्वय रीतियों से निम्न प्रकार किया जाता है - द्रव्य ऊनोदरिका (पुरुष की अपेक्षा) (i) अल्पाहारा- एक से आठ कवल तक आहार करना अल्पाहारा कहलाता है। (ii) अपार्धा- नौ से बारह कवल तक आहार करना अपार्धा कहलाता है। (iii) द्विभागा- तेरह से सोलह कवल तक आहार करना द्विभागा कहलाता है। ___ (iv) प्राप्ता- सत्तरह से चौबीस कवल तक आहार करना प्राप्ता ऊनोदरिका है। (v) किंचिदूना- पच्चीस से इकतीस कवल तक आहार करना किंचिदूना ऊनोदरी है। कवल का खुलासा- यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि ऊनोदरी के पाँच प्रकारों में कवल की जो संख्या बतायी गयी है वह पुरुष की अपेक्षा से है, क्योंकि पुरुष और स्त्री का आहार प्रमाण भिन्न-भिन्न होता है। आगमों में कहा गया है कि सामान्य रूप से पुरुष का भोजन बत्तीस कवल प्रमाण और स्त्री का अट्ठाईस कवल होता है। जितना खाद्य पदार्थ मुख में सरलता पूर्वक एक बार डाला जा सके उसे कवल कहते हैं। उक्त पाँचों ऊनोदरिका जघन्य, मध्यम व उत्कृष्ट की अपेक्षा तीन-तीन प्रकार की होती है। जैसे (i) अल्पाहारा ऊनोदरी - एक कवल खाना जघन्य है, दो से पाँच कवल तक खाना मध्यम है और छह से आठ कवल तक खाना उत्कृष्ट है। (ii) अपार्धा ऊनोदरी - नौ ग्रास खाना जघन्य है, दस से ग्यारह ग्रास ग्रहण करना मध्यम और बारह ग्रास लेना उत्कृष्ट है। (iii) द्विभागा ऊनोदरी - तेरह ग्रास खाना जघन्य है, चौदह से पन्द्रह ग्रास ग्रहण करना मध्यम और सोलह ग्रास लेना उत्कृष्ट है।
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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