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________________ 86...सज्जन तप प्रवेशिका इस तप का यन्त्र न्यास इस प्रकार है - तप दिन 74, उपवास 51, पारणा 23 ऋषभ अ. | सं. | अ. | सु. | प. | सु. | चं. | सु. | शी. | श्रे. वासु. No Na NA Na 3. NH N N N |1|1|1 N N | | वि. अ. | ध. | शां. | कुं. | अ. | म. | मु. | न. | ने. | पा. वर्ध. NA उ.ए.उ.ए.उ.|ए./उ.|ए.उ.|ए./उ.ए. उ.|ए.उ.|ए.उ.|ए.उ.|ए.उ.|ए.उ.ए. NA NA No. NH NI N1 Na N ल ल दूसरी रीति- पंचाशक प्रकरण (19/122) के अनुसार जिस महीने और तिथि को केवलज्ञान की उत्पत्ति हुई, उस महीने और तिथि को यह तप करना चाहिए। __ इस प्रकार दूसरी विधि में भी 51 उपवास ही होते हैं, परन्तु पारणा एवं कुल दिनों की संख्या निश्चित नहीं होती। उद्यापन – इस तप का उत्सव और प्रभु भक्ति आदि दीक्षा-तप की भाँति ही करें। • प्रचलित परम्परानुसार इस तप के उपवास दिनों में निम्न जापादि करने चाहिए जाप - जिस तीर्थङ्कर के केवलज्ञान तप की आराधना प्रवर्त्तमान हो, उनके नाम के साथ ‘सर्वज्ञाय नमः' जोड़ें। जैसे- आदिनाथ सर्वज्ञाय नमः, महावीरस्वामी सर्वज्ञाय नम: आदि। साथिया खमासमण कायो. माला ____ 12 12 12 20 4. तीर्थङ्कर निर्वाण तप तीर्थङ्कर परमात्माओं ने जिस तप के द्वारा निर्वाण प्राप्त किया, वह निर्वाण-तप कहलाता है। इस तप के माध्यम से उस तप विशेष की आराधना की जाती है इसलिए इसे निर्वाण-तप कहा गया है। इस तप के करने से आठ भव में मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह तप साधु
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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