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________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...87 एवं श्रावकों के करने योग्य अनागाढ़ तप है। इस तप की सामान्य विधि यह है - विधि निव्वाणमंतकिरिया सा, चोद्दसमेण पढमनाहस्स। सेसाण मासिएणं, वीर जिणिंदस्स छट्टेणं।। पंचाशक, 19/16%; प्रवचनसारोद्धार, 45/456 • आदिनाथ भगवान ने छह उपवास करके मोक्ष प्राप्त किया, उसके 6 उपवास। • भगवान महावीर ने बेला तप के साथ निर्वाण प्राप्त किया, उसके 2 उपवास। . अजितनाथ से लेकर पार्श्वनाथ तक के बाईस तीर्थङ्करों ने मासक्षमण तप के साथ निर्वाण प्राप्त किया, उसके 660 उपवास। इस प्रकार 6 + 2 + 600 = 668 उपवास और 24 पारणा होते हैं। कुल 692 दिनों में यह तप पूर्ण होना चाहिए, किन्तु वर्तमान में इतने मासक्षमण तप करना दुःसाध्य है। अत: इतने उपवासों की परिपूर्ति एकान्तर उपवास के द्वारा की जा सकती है। पारणे में एकाशन तप करना जरूरी है। यहाँ इस तप की मूल-विधि का ही यन्त्र दे रहे हैं - तप दिन 692, उपवास 660, पारणा 24 | ऋ. | अ. | सं. | अ. | सु. | प. | सु. | चं. | सु. | शी. | श्रे. | वा. | बा उ. ए. |ए. ब ए. mo 84 |ए. उ.ए. उ. |30|1| 61130|1|30 | वि. | अ. | ध. | शां. | कुं. | अ. | म. | मु. | न. | ने. | पा. | वर्ध. Na 8 उद्यापन - इस तप के पूर्ण होने पर बृहत्स्नात्रपूर्वक जिनप्रतिमा के समक्ष चौबीस-चौबीस सर्व प्रकार के फल, नैवेद्य आदि चढ़ाएँ। साधुओं की भक्ति एवं संघपूजा करें।
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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