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________________ 58...सज्जन तप प्रवेशिका के दिन भी एक समय के भोजन का त्याग करना। इस प्रकार उपवास के पहले और दूसरे दिन में एकाशन करने से चार समय के आहार का त्याग हो जाता है, अत: यह उपवास- चतुर्थभक्त के नाम से जाना जाता है। दिवसचरिम तप- दिन के अन्तिम भाग में अर्थात सूर्यास्त के समय अथवा सूर्यास्त के कुछ समय पूर्व से दूसरे दिन सूर्योदय तक के लिए तीन आहार (तिविहार) या चारों आहार (चउविहार) का त्याग कर देना, दिवसचरिमतप कहलाता है। जीवन के अन्तिम समय तक (जीवन पर्यन्त) किया गया प्रत्याख्यान भवचरिम तप कहलाता है। दिवसचरिम प्रत्याख्यान में रात्रि भोजन का स्वत: त्याग हो जाता है तथा श्रावक के लिए रात्रि भोजन का त्याग करना आवश्यक भी है। निर्विक्रतिक (नीवि) तप- मन को विकृत करने वाली अथवा विगतिदर्गति में ले जाने वाली विकृतियाँ जिसमें न हों, वैसा विगय रहित एक बार आहार लेना, नीवि तप है। 25. इन्द्रियजय तप इन्द्र अर्थात जीव, इसे जिसके द्वारा जाना जाये उस साधन को इन्द्रिय कहते हैं। विशेषावश्यकभाष्य में इन्द्र शब्द का अर्थ-घटन करते हुए कहा गया है कि इन्द्रो जीवो सव्वोवलद्धि, भोग-परमेस रत्तणओ। सोत्ताई-भेयमिंदियमिह, तल्लिंगाई भावाओ ।। सर्व उपलब्धियों, सर्व भोगों और परम ऐश्वर्य का स्वामी होने से जीव 'इन्द्र' कहलाता है। जीव को जानने के साधन श्रोत्रादि विभिन्न लक्षणों से युक्त होने के कारण इन्द्रियाँ कहलाती हैं। इन्द्रियाँ पाँच कही गयी हैं- 1. स्पर्शेन्द्रिय (त्वचा) 2. रसनेन्द्रिय (जीभ) 3. घ्राणेन्द्रिय (नाक) 4. चक्षुरिन्द्रिय (आँख) 5. श्रोत्रेन्द्रिय (कान)। इन इन्द्रियों के मुख्य विषय पाँच हैं, किन्तु अवान्तर 23 विषय हैं जैसेस्पर्शेन्द्रिय के आठ विषय हैं- हल्का, भारी, कोमल, खुरदरा, ठण्डा, गरम, चिकना, रूखा। रसनेन्द्रिय के पाँच विषय हैं - मीठा, खट्टा, खारा, कड़वा और तीखा। घ्राणेन्द्रिय के दो विषय हैं - सुगन्ध और दुर्गन्ध। चक्षुरिन्द्रिय के पाँच विषय हैं - सफेद, काला, नीला, पीला और लाल। श्रोत्रेन्द्रिय के तीन विषय
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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