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________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ.... .39 एका खलु षोडषान्तगणितैः, श्रेणी-द्वयं च क्रमात् । पूर्णं स्यात् तरलोऽष्टमैरपि चतुस्त्रिंशन्मितैनिर्मलैः ।। आचारदिनकर, पृ. 349 • इस तप में अनुक्रम से काहलिका, दाडिम, लता, तरल (पदक), दूसरी लता, दाडिम और काहलिका तप किये जाते हैं। • प्रथम काहलिका के निमित्त एक उपवास करके पारणा करें। इसके बाद दो उपवास करके पारणा करें, फिर तीन उपवास करके पारणा करें। तत्पश्चात दाड़िम के निमित्त आठ बार निरन्तर तीन-तीन उपवास (तेला) करके पारणा करें। तत्पश्चात एक उपवास कर पारणा, फिर दो उपवास करके पारणा करें। इस प्रकार अनुक्रम से निरन्तर सोलह उपवास करने पर एक लता होती है। तत्पश्चात पदक में चौंतीस तेले होते हैं। • फिर पश्चानुपूर्वी से सोलह उपवास करके पारणा, पन्द्रह उपवास करके पारणा- इस प्रकार उतरते - उतरते एक उपवास करके पारणा करें। पश्चात दाड़िम के निमित्त आठ तेला करें। फिर तेला, बेला एवं उपवास करें। ऐसा करने से दूसरी लता पूरी होती है । इस तप में 434 उपवास एवं 88 पारणा, कुल मिलाकर 1 वर्ष, 5 मास और 12 दिनों में प्रथम परिपाटी का तप पूर्ण होता है। कुछ आचार्यों के अभिमत से यह तप भी चार परिपाटियों से 5 वर्ष, 9 मास, 18 दिनों में पूर्ण किया जाता है। यहाँ विशेष ध्यातव्य है कि कनकावली और रत्नावली दोनों तप लगभग समान हैं। दोनों में मुख्य भेद यह है कि जहाँ रत्नावली में 8 तथा 34 बेले किये जाते हैं, वहाँ कनकावली तप में 8 और 34 तेले किये जाते हैं। शेष तप के दिन बराबर हैं। पारणे में भी समानता है । कनकावली तप की एक परिपाटी में 1 वर्ष, 5 मास एवं 12 दिन लगते हैं। इस प्रकार चारों परिपाटियों के 5 वर्ष, 9 मास और 18 दिन होते हैं। तुलनात्मक अध्ययन के लिए दोनों यन्त्रों का अवलोकन करना चाहिए।
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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