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32... आधुनिक चिकित्सा में मुद्रा प्रयोग क्यों, कब और कैसे? सुपरिणाम
इस मुद्रा के निम्न लाभ हैं
• बौद्धिक दृष्टि से व्यक्ति की ग्राह्य शक्ति का संवर्धन होता है जिससे आवश्यक एवं ज्ञानवर्द्धक बहुत सी बातों को मस्तिष्क पटल पर संग्रहित करने में अप्रत्याशित सफलता मिलती है। मस्तिष्क के ज्ञानतंतु सक्रिय बनते हैं, स्मरण शक्ति बढ़ती है और ज्ञान विकसित होता है। जिन व्यक्तियों की स्मृति मन्द हो उन्हें ज्ञानमुद्रा का निरंतर अभ्यास करना चाहिए।
• मानसिक दृष्टि से चित्त की एकाग्रता, प्रसन्नता और निर्भीकता बढ़ती है। साथ ही उत्तेजना, प्रमाद, अनिद्रा, क्रोध, मान, जैसे तनाव दूर होते हैं। मस्तिष्क सम्बन्धी किसी तरह का रोग जैसे पागलपन, चिड़चिड़ापन, अस्थिरता, घबराहट, अनिश्चितता, उन्मादपन, डिप्रेशन, फिट की बीमारी, उतावलापन, व्याकुलता और चंचलता का निवारण होता है। माइग्रेन जैसे दर्द के लिए ज्ञान मुद्रा के साथ प्राण मुद्रा करनी चाहिए। मस्तिष्क शक्तिशाली एवं ऊर्जायुक्त
होता है।
• शारीरिक दृष्टि से हाथों की नसें एवं धमनियाँ मजबूत बनती है। स्नायुमंडल की क्षमता बढ़ती है। शरीर की पिच्युटरी और पिनियल ग्रंथियों के स्राव नियंत्रित रहते हैं। जिन्हें अधिक नींद आती हो उनकी नींद संतुलित होती है। संशोधन के अनुसार अविकसित बुधरेखा और शुक्र पर्वत का विकास होता है।
• आध्यात्मिक स्तर पर मानव मस्तिष्क के रहस्यमय तत्त्व अभिव्यक्त होते हैं। जिससे हमारा मस्तिष्क स्थानीय आज्ञा चक्र अत्यधिक प्रभावित होता है। परिणामस्वरूप व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास और पराशक्तियों में वृद्धि होती है। इसके समुचित अभ्यास से व्यक्ति एक-दूसरे के मनोभावों को आसानी से जान सकता है तथा भूत-भविष्य की घटनाओं को अपने स्मृति पटल पर यथावत देख सकता है। इस मुद्रा के दीर्घ अभ्यास से ज्ञान-नेत्र (केवलज्ञान) प्रकट हो सकता है जिसे आज की भाषा में सिक्स्थ सैन्स डेवलप होना (छठवीं इन्द्रिय का विकास) कहते हैं। यह वस्तुत: मानव मस्तिष्क के अपूर्ण रहस्यों को व्यक्त करने की कुंजी है।
• ज्ञान मुद्रा के प्रतीकात्मक अर्थ के आधार पर कनिष्ठिका, अनामिका