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94... आधुनिक चिकित्सा में मुद्रा प्रयोग क्यों, कब और कैसे? सफल नहीं होती। जहाँ अनुशासन हो, वहाँ संयम, मर्यादा, विवेक, जागरूकता, विनम्रता इत्यादि अनेक गुणों का सहज रूप से आगमन होता है। इस तरह अनुशासन का प्रयोग व्यक्ति को अत्यन्त ऊँचाईयों की ओर अग्रसर करता है। अनुशासन मुद्रा का उद्देश्य जीवन जगत में अपूर्व शान्ति का साम्राज्य फैलाते हुए अध्यात्म जगत के अन्तिम छोर का स्पर्श करना है। विधि ___ इस मुद्रा के लिए आरामदायक आसन में बैठ जायें। फिर तर्जनी अंगुली को एकदम सीधा रखते हुए शेष तीन अंगुलियों (कनिष्ठा, अनामिका एवं मध्यमा) को मुट्ठी के रूप में मोड़कर अंगुठे से योजित करना अनुशासन मुद्रा है।
निर्देश- 1. अनुशासन मुद्रा की सफलता के लिए पद्मासन या सुखासन श्रेष्ठ आसन है। 2. इस मुद्रा का अभ्यास यथेच्छा किसी भी समय किया जा सकता है लेकिन एक साथ दीर्घ अवधि तक नहीं कर सकते। पूज्य मुनि श्री किशनलालजी म. सा. के निर्देशानुसार प्रारम्भ में आठ मिनट, फिर एक माह तक प्रतिदिन एक-एक मिनट बढ़ाते जायें। इस तरह 48 मिनट पर्यन्त यह प्रयोग किया जा सकता है। सुपरिणाम
• प्रस्तुत मुद्रा का स्मरण करने मात्र से 'निज पर शासन फिर अनुशासन' जैसे सांस्कृतिक मूल्य जीवन व्यवहार में चरितार्थ हो उठते हैं।
• मनोजगत अनावश्यक प्रवृत्तियों से दूर रहता है। नेतृत्व करने की क्षमता बढ़ती है। सफलता पद-पद पर चरण चूमती है।
• एक्यूप्रेशर के अनुसार मेरुदण्ड प्रभावित होता है जिससे व्यक्ति स्वयं में पौरूषत्व का अनुभव करता है।
• इससे रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति का विकास होता है तथा शारीरिक एलर्जी, लैंगिक रोग, जलन आदि का भी शमन होता है।