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48... आधुनिक चिकित्सा में मुद्रा प्रयोग क्यों, कब और कैसे?
निर्देश - निर्धारित आसन में यह मुद्रा 15-15 मिनट दो-तीन बार की जा सकती है।
सुपरिणाम
यह ज्ञातव्य है कि आकाश तत्त्व का सम्बन्ध स्वर नाद से है इस तत्त्व के असंतुलित होने पर कान सम्बन्धी रोगों की अभिवृद्धि होती है यदि कान के किसी भी दर्द से छुटकारा पाना हो तो यह खास मुद्रा है।
• यह मुद्रा हृदय और श्रवण शक्ति के अभिवर्धन की सूचक है । • यद्यपि आकाश मुद्रा के प्रयोग से भी कर्ण सम्बन्धी रोगों को राहत मिलती है उपरान्त शून्य मुद्रा अधिक लाभदायी है।
कम सुनाई देना, ऊंचा सुनाई देना, कान का बहना, कान में दर्द होना आदि किसी भी तकलीफ में जब तक ठीक न हो निरन्तर करते रहने से आशातीत परिणाम आते हैं।
• किसी व्यक्ति की आवाज स्पष्ट न हो उसके लिए भी यह मुद्रा उपयोगी है। कोई अंग सूना पड़ जाये तब भी इस मुद्रा से फायदा होता है।
• इस मुद्रा के द्वारा निम्न शक्ति केन्द्र जागृत होकर शरीर के प्रभावित अंगों का उपचार करते हैं
चक्र - मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- अग्नि एवं जल तत्त्व ग्रन्थि - एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रंथि केन्द्र- तैजस एवं स्वास्थ्य केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - पाचन संस्थान, नाड़ी संस्थान, यकृत, तिल्ली, आँतें, प्रजनन अंग, मल-मूत्र अंग, गुर्दे आदि ।
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एक्युप्रेशर उपचार पद्धति के मुताबिक शून्य मुद्रा से सर्दी रोग, गले के रोग, गैस-अजीर्ण रोग में राहत मिलती है।
यह यौगिक परम्परा के अनुयायियों द्वारा प्रयुक्त की जाने वाली महत्त्वपूर्ण
मुद्रा है।