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________________ सामान्य अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं का स्वरूप......41 तथा अनामिका अंगुली को बायें नासारन्ध्र के बगल में रखें। कनिष्ठिका अंगुली का उपयोग नहीं होगा। • सिर एवं पीठ का हिस्सा सीधा रखें, किसी तरह का जोर न लगायें। इस अवस्था को नासिका मुद्रा कहते हैं। • अब नासिका मुद्रा का अभ्यास करने हेतु दाहिने नासिका रन्ध्र को अंगूठे से दबाकर आवश्यकता अनुसार खोले अथवा बंद करें, पुनः पुनः खोलने-बंद करने की पुनरावृत्ति करते रहें। इस प्रकार नासिका में वायु के आवागमन को इच्छानुसार नियंत्रित किया जाता है। . इसी तरह से बायें नासारन्ध्र को भी अनामिका से दबाकर आवश्यकतानुसार खोलते अथवा बंद करते हुए वायु को नियंत्रित किया जाता है। निर्देश 1. इस अभ्यास की सिद्धि के लिए निर्दिष्ट विधि का यथायोग्य अनुसरण करना चाहिए। 2. यह अभ्यास किसी भी समय अनुकूल अवधि तक किया जा सकता है। सुपरिणाम • यह मुद्रा अनेक हस्त मुद्राओं में से एक है। इसका प्रयोग अधिकांश प्राणायाम के अभ्यास के पूर्व उसकी संसिद्धि एवं सफलता के उद्देश्य से किया जाता है। • सामान्यतया नासाग्र मुद्रा से शरीर में प्राण प्रवाह का नियमन होता है। इससे मन को शांत रखने में मदद मिलती है। सम्पूर्ण शरीर को अतिरिक्त मात्रा में ऑक्सीजन मिलती है और साथ ही साथ शरीर से अधिकाधिक कार्बन डाईऑक्साइड बाहर निकलती है। इससे रक्त परिशुद्ध होता है और सम्पूर्ण शरीर के स्वास्थ्य और शक्ति में वृद्धि होती है। • इस मुद्रा से निम्नांकित केन्द्र आदि प्रभावित होते हैं जिससे कई समस्याओं का सहज निराकरण होता है। चक्र- मणिपुर, अनाहत एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- अग्नि, वायु एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि- एड्रीनल, पैन्क्रियाज, थायमस एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र- तैजस, आनंद एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन तंत्र, नाड़ी तंत्र, यकृत, तिल्ली, आंतें, हृदय, फेफड़ें, भुजाएं, रक्त संचरण प्रणाली, स्नायुतंत्र, निचला मस्तिष्क।
SR No.006257
Book TitleYogik Mudrae Mansik Shanti Ka Safal Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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