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सामान्य अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं का स्वरूप......39 सीधी, समस्त अंगुलियाँ परस्पर में सटी हुई एवं अधोमुख रहें। अंगूठे को इस तरह रखें कि वह ऊपरी होठ को स्पर्श करता रहे। कोहनी शरीर के बगल में रहे। फिर अपनी आँखों को कनिष्ठा अंगुली के अग्रभाग पर केन्द्रित करें। जब चित्त की एकाग्रता बढ़ जाये तो हाथ को हटा लिया जाए, परन्तु दृष्टि को उसी स्थान पर केन्द्रित करने का प्रयास करते रहना भूचरी मुद्रा है।' निर्देश 1. इस मुद्रा का अभ्यास किसी भी आसन, स्थिति एवं समय में किया जा
सकता है। 2. मुद्रा प्रयोग के समय कनिष्ठिका अंगुली के अग्रभाग को लगभग एक
मिनट या उससे अधिक समय तक निहारें। यदि संभव हो सके तो इस ___दौरान पलकों एवं पुतलियों को भी हिलाये-डुलाये नहीं। 3. यदि इस दौरान अन्य विचार आते हैं तो उन्हें आने दें, लेकिन साथ ही
साथ अंगुली के अग्रभाग के प्रति निरन्तर सजगता बनाए रखें।। 4. लगभग एक मिनट के बाद अपने हाथ को चेहरे के सामने से हटा लें,
लेकिन उस स्थान को निरन्तर निहारते रहें जहाँ पर छोटी अंगुली थी। 5. पूर्णतः शून्य में लीन हो जायें, खो जायें। सुपरिणाम
• यदि इस मुद्रा का अभ्यास पर्याप्त अवधि तक सजगता के साथ किया जाये तो शांति और मानसिक एकाग्रता बढ़ती है।
• अन्तर्निरीक्षण करने की क्षमता का विकास होता है। स्मरण शक्ति में अभिवृद्धि होती है। इससे चेतना अन्तर्मुखी बनती है।
• ध्यान की तैयारी के लिए यह अभ्यास उत्तम कोटि का कहा जा सकता है।
• अगोचरी मुद्रा एवं शाम्भवी मुद्रा के सभी लाभ इससे प्राप्त होते हैं। - . यह मुद्रा अन्य कई दृष्टियों से भी गुणकारी है। जैसे कि इस मुद्रा का अभ्यासी साधक विशिष्ट केन्द्रों को जागृत कर शारीरिक एवं भावनात्मक समस्याओं से ऊपर उठ जाता है। इस मुद्रा से प्रभावित चक्र आदि का चार्ट इस प्रकार है
चक्र- विशुद्धि एवं अनाहत चक्र तत्त्व- वायु तत्त्व प्रन्थि- थायरॉइड, पेराथायरॉइड एवं थायमस ग्रन्थि केन्द्र- विशुद्धि एवं आनन्द केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- नाक, कान, गला, मुँह, स्वरयंत्र, हृदय, फेफड़ें, भुजाएँ, रक्त संचरण प्रणाली।