________________
34... यौगिक मुद्राएँ : मानसिक शान्ति का एक सफल प्रयोग सुपरिणाम
• चिन्मय मुद्रा के प्रतीकात्मक अर्थ पर विचार किया जाए तो इस मुद्रा में मुड़ी हुई चार अंगुलियाँ जगत के सीमित पक्ष को उजागर करती हुई चेतना को स्वयं के विराट् स्वरूप का बोध करवाती है। बंधी हुई मुट्ठी भौतिक जगत की संकीर्णता एवं अचेतनता को दर्शाती हुई स्वभाव में स्थिर रहने का संकेत करती है। सामने की ओर इंगित करता हुआ अंगूठा चेतन मन को भावातीत स्तर पर पहुंचने का निर्देश करता है। तर्जनी एवं अंगूठे के मध्य रहा हुआ संस्पर्श यह उजागर करता है कि अभिव्यक्त चेतना (संसारी आत्मा) और अनभिव्यक्त चेतना (मुक्त आत्मा) अभिन्न है।
• चिन्मुद्रा की मूल्यवत्ता के विषय में कहा जाता है कि मुड़ी हुई अंगुलियाँ शारीरिक, प्राणिक एवं मानसिक पक्षों का प्रतिनिधित्व करती हुई इन स्थानों को लाभ पहुँचाती है। अंगूठा का संकेत इस चेतना को सर्वव्यापी सत्ता से सम्पर्क स्थापित करने की क्षमता का अहसास कराता हुआ दुर्बल मन को सबल बनाता है।
• इस मुद्रा को योग मुद्रा का प्रतीक भी माना गया है। इस अपेक्षा से चार अंगुलियाँ चैतन्यता या पूर्ण सजगता के क्रमिक विकास को दर्शाती हुई आत्म भावों को तद्रूप प्रवृत्ति करने के लिए प्रेरित करती है।
• सामान्यतया यह मुद्रा निम्न चक्र आदि के दोषों का शमन कर उन्हें सही दिशा की ओर प्रवृत्त करती है। इससे साधक दीर्घायु प्राप्त करता है।
चक्र- मूलाधार, मणिपुर एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- पृथ्वी, अग्नि एवं आकाश तत्त्व अन्थि- प्रजनन, एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्रशक्ति, तैजस एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मेरूदण्ड, गुर्दे, पांव, पाचन तंत्र, नाड़ी तंत्र, स्नायु तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँतें, निचला मस्तिष्क आदि।