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32... यौगिक मुद्राएँ : मानसिक शान्ति का एक सफल प्रयोग सुपरिणाम
• इस मुद्रा का अभ्यासी साधक निम्न चक्रों आदि का भेदन कर उससे प्राप्त होने वाली शक्तियों को स्वयं में प्रकट कर लेता है।
चक्र- अनाहत, विशुद्धि एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- वायु एवं आकाश तत्त्व प्रन्थि- थायमस, थायरॉइड, पेराथायरॉइड एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्रआनंद, विशुद्धि एवं ज्योति केन्द्र।
• इससे एलर्जी, दमा, गठिया, बहरापन, मस्तिष्क की समस्या, गले, मुंह, कंठ, कंधे, कान आदि के विकार, कमजोरी, हृदय रोग, छाती में दर्द आदि शारीरिक समस्याओं का शमन होता है।
• इस मुद्रा से अनुत्साह, उन्मत्तता, अवसाद, निराशा, पागलपन, असन्तुष्टि, सुस्ती, लज्जा, निर्ममता, धुम्रपान, निष्क्रियता, शंकालु वृत्ति, भावनात्मक अस्थिरता, लालसा, असृजनशीलता आदि भावनात्मक समस्याओं का निवारण होता है।
• इस मुद्राभ्यास के द्वारा नाड़ियों के प्रवाह को विपरीत करने से दीर्घ अवधि तक स्थिर अवस्था में रहने की क्षमता का जागरण होता है।
• तर्जनी एवं अंगूठे का संयोग तथा मध्यमा, अनामिका एवं कनिष्ठिका का अलगाव प्रकृति के त्रिगुणत्व पर जीवात्मा का ऐक्य भाव प्रस्तुत करता है। परिणामत: चेतन द्रव्य अचेतनात्मक सत्ता पर विजय पा लेती है शेष परिणाम ज्ञान मुद्रा के समान जानने चाहिए। 2. चिन्मय मुद्रा
चिन्मय का अर्थ होता है अभिव्यक्त चेतना। यह दृश्यमान जगत जितने भी रूपों में दिखाई दे रहा है वह चेतनात्मक शक्ति का ही प्रकट रूप है, बाह्य रूप हैं। पृथ्वी, पानी, वायु, वनस्पति, पशु, पक्षी आदि चेतन सत्ता की ही पर्यायें हैं तथा मकान, वस्त्र, आभूषण, पैसा, रूप, शरीर आदि चेतना शक्ति से पृथक हुई रूपान्तरित अचेतन पर्यायें हैं।
प्रत्येक चेतन सत्तात्मक द्रव्य अनन्त शक्ति का पुंज है। अज्ञानदशा, भ्रमदशा में वह शक्ति अधिकांशत: आवृत्त रहती है तथा जितने अंशों में अनावृत्त रहती है वह भी सम्यक पुरुषार्थ के अभाव में व्यर्थ चली जाती है। इस मुद्रा का अभ्यास आवृत्त शक्ति को उद्घाटित और अनावृत्त शक्ति का सदुपयोग करने के उद्देश्य से किया जाता है।