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________________ विशिष्ट शब्दों का अर्थ विन्यास ...159 अग्नि तत्त्व का सम्बन्ध चक्षु इन्द्रिय से अधिक हैं अत: जिनमें अग्नि तत्त्व की अधिकता हो उनकी दृष्टि पैनी होती है और जिनमें इस तत्त्व की अल्पता हो उनकी दृष्टि कमजोर होती है। शरीर में नाभि से हृदय तक का भाग अग्नि तत्त्व सम्बन्धी माना गया है इतना भाग अग्नि तत्त्व से अधिक प्रभावित रहता है। 4. वायु तत्त्व- वायु अग्नि तत्त्व से भी हल्की होती है अत: अग्नि तत्त्व से ऊपर वाले शरीर के भागों में, मुख्यतया हृदय से कंठ तक वायु तत्त्व की अधिकता होती है। __प्राय: वायु अस्थिर होती है अत: शरीर में हलन-चलन, संकोचन- फैलाव आदि गतिविधियाँ वायु तत्त्व जनित है। ____5. आकाश तत्त्व- आकाश खाली होता है सभी को स्थान देता है, अतः शरीर में जहाँ-तहाँ रिक्तता है वे भाग आकाश तत्त्व से सम्बन्धित है। सामान्यतः शरीर में कंठ से मस्तिष्क तक का भाग आकाशतत्त्वीय कहा गया है। __ अत: हमारे शरीर में पांचों इन्द्रियों (आँख, कान, नाक, जीभ, स्पर्श) के माध्यम से जो ग्रहण किया है उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप जो कुछ होता है उसका सम्बन्ध आकाश तत्त्व से है जैसे- काम, क्रोध, मोह, लोभ इत्यादि। यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य है कि उक्त पंच तत्त्वों की कमी होने से अथवा इनमें असंतुलन होने से उस-उस सम्बन्धी पदार्थ एवं स्थान अस्वस्थ हो जाते हैं तथा शरीर रोगों का शिकार बन जाता है। जबकि मुद्रा-आसन-प्राणायाम आदि यौगिक क्रियाओं से तत्त्वों का संतुलन बना रहता है। ___ मेरुदण्ड- मेरुदण्ड अर्थात रीढ़ की हड्डी, जो शरीर के पिछले भाग में होती है। यह नितम्ब से शुरु होकर खोपड़ी तक एक श्रृंखला में कार्य करती है। इसमें कुल 33 हड्डियों के जोड़ होते हैं जिन्हें मणके, कशेरुकायें, वरटेबरा आदि नामों से पुकारा जाता है। ये मणके साईकिल की चैन के समान एक, दूसरे के साथ समान दूरी पर जुड़े हये रहते हैं। जब किन्हीं दो मणकों के बीच की दूरी कम या अधिक हो जाती है अथवा एक दूसरे से चिपक जाते हैं तो मेरुदण्ड का लोच समाप्त हो जाता है। परिणामस्वरूप सरवायकल स्पोंडोलाईसस, स्लिपडिस्क जैसी अनेक बीमारियाँ हो सकती है।
SR No.006257
Book TitleYogik Mudrae Mansik Shanti Ka Safal Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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