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________________ 158... यौगिक मुद्राएँ : मानसिक शान्ति का एक सफल प्रयोग आम्लीय तत्त्वों का नियन्त्रण रखता है। नीचे वाला भाग इंसुलिन नामक रस बनाता है जो शरीर में ऊर्जा उत्पादन हेतु मुख्य तत्त्व होता है। प्रजनन अन्थियाँ- यह ग्रन्थि कामेच्छा को नियन्त्रित कर विपरीत लिंग में आकर्षण पैदा करती है। जहाँ पिनियल कामेच्छा जागृत करती है, थायराइड उसे गति देती है, पीयूष ग्रन्थि प्रजनन अंगों का विकास करती है वहीं यह ग्रन्थि सारे प्रजनन तंत्र के कार्यों का संचालन करती है। प्रजनन ग्रन्थियाँ ऐसे हार्मोन्स का निर्माण करती है जिसके द्वारा स्त्री-स्त्रीत्व प्राप्त करती है और उसमें स्त्रियोचित व्यक्तित्व बना रहता है। इन ग्रन्थियों के स्राव से पुरुषों में पुरुषत्व का गुण पैदा होता है। पंचमहाभूत- प्रत्येक मनुष्य का शरीर पंच तत्त्वों से निर्मित है। इन पंच तत्त्वों को ही महाभत की संज्ञा दी गई है। ये पांचों तत्त्व मनुष्य शरीर के प्रत्येक भाग में होते हैं फिर भी भिन्न-भिन्न भागों में इस पांचों का अनुपात अलग-अलग होता है। उसी के अनुरूप प्रत्येक अंग अवयव अपना अलग-अलग कार्य करते हैं। शरीर में इन पंच तत्त्वों के अनुरूप अवयव बनते हैं और अन्य गतिविधियाँ होती है। हमारा शरीर इन पांच तत्त्वों के असंतुलन से ही रोगग्रस्त और संतुनल से आरोग्यमय रहता है। संक्षेप में पंच तत्त्वों का स्वरूप निम्न प्रकार है___1. पृथ्वी तत्त्व- पृथ्वी ठोस गुण वाली है अत: शरीर में जो भी ठोस पदार्थ है वे पृथ्वी तत्त्व से निष्पन्न हैं जैसे- हड्डियाँ, मांसपेशियाँ, त्वचा, नाखून, बाल इत्यादि। शरीर में पगथली से गुदा तक का भाग पृथ्वी तत्त्व से संबंधित माना जाता है। यहाँ पृथ्वी तत्त्व अधिक सक्रिय रहता है। 2. जल तत्त्व- जल तत्त्व पृथ्वी तत्त्व से हल्का और तरल होता है अत: शरीर में जितने भी तरल पदार्थ हैं वे जल तत्त्व से निर्मित हैं जैसे- रक्त, वीर्य, लासिका, मल, मूत्र, कफ, थूक, पसीना, मज्जा आदि। . शरीर में गुदा से नाभि तक का भाग जलतत्त्वीय माना गया है यहाँ जल तत्त्व अधिक क्रियाशील रहता है। 3. अग्नि तत्त्व- अग्नि तत्त्व उष्णता गुण वाला है तथा जल तत्त्व से भी हल्का होता है। अग्नि का स्वभाव ऊपर की ओर उठना है। हमारे शरीर की उष्णता प्रधान जो भी क्रियाएँ हैं वे सभी अग्नि तत्त्व से सम्बन्ध रखती है जैसेजोश, उत्तेजना, स्फूर्ति, दृष्टि आदि।
SR No.006257
Book TitleYogik Mudrae Mansik Shanti Ka Safal Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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