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(च)
विशिष्ट अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं की रहस्यपूर्ण विधियाँ ...129 31. (क) हठयोग प्रदीपिका, 3/32
(ख) शिवसंहिता, 4/51 (ग) कपालकुहरे जिह्वा, प्रविष्टा विपरीतगा। ध्रुवोरन्तर्गता दृष्टि, मुदा भवति खेचरी ॥
गोरक्षसंहिता, 1/62 (घ) योगतत्त्वोपनिषत, 127
कपालकुहरे जिह्वा, प्रविष्टा विपरीतगा। ध्रुवोरन्तर्गता दृष्टि, मुदा भवति खेचरी॥
योगचूडामण्यूपनिषत्, 52 (छ) योगकुण्डल्यूपनिषत्, 2/49 32. तंत्र क्रिया और योग विद्या, पृ. 152 33. हठयोग प्रदीपिका, 3/32-53 34. घेरण्ड संहिता, 3/33-34 35. हठयोग प्रदीपिका, 3/77,78,79 36. तंत्र, क्रिया और योगविद्या, पृ.649 37. भूमौ शिरश्च संस्थाप्य, करयुग्मा समाहितः । ऊर्ध्वपाद स्थिरो भूत्वा, विपरितकरीमता ॥
(क) घेरण्ड संहिता, 3/35 (ख) शिव संहिता, 4/69
ऊर्ध्वनाभिरधस्तालु, रूवं सूर्यरध: शशी। करणी विपरीताख्या, गुरुपदेशेन लभ्यते।
(ग) गोरक्षसंहिता, 2/34
(घ) योगतत्त्वोपनिषत्, 124 38. (क) घेरण्ड संहिता, पृ. 91
(ख) हठयोग प्रदीपिका, 3/82 39. घेरण्ड संहिता, पृ. 3/36 40. तंत्र क्रिया और योगविद्या, सत्यानन्द सरस्वती पृ. 489 41. सिद्धासनं समासाद्य कर्ण चक्षुर्न सोमुखम् । अंगुष्ठ तर्जनी मध्यानामभिश्चैव साधयेत् ॥
(क) घेरण्ड संहिता, 3/37 (ख) योगचूड़ामण्यूपनिषत्, 59