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128... यौगिक मुद्राएँ : मानसिक शान्ति का एक सफल प्रयोग
मेद्रं दक्षिणगुल्के तुं, दृढ़बन्धं समाचरेत् । जरा विनाशिनी मुद्रा, मूल बन्धो निगद्यते ॥
(क) घेरण्ड संहिता, 3/14-15 (ख) हठयोग प्रदीपिका, 3/61-63
(ग) शिवसंहिता, 4/64-65 (घ) गोरक्ष संहिता, 1/80-81
(च) योगचूड़ामण्यूपनिषत्, 46 21. घेरण्ड संहिता, 3/16-17 22. शिवसंहिता, 4/65-67 23. हठयोग प्रदीपिका, 3/64 24. हठयोग प्रदीपिका, 3/65-67 25. हठयोग प्रदीपिका, 3/68-69 26. योगचूडामण्यूपनिषत्, 47 27. वामपादस्य गुल्फे तु, पातुमूलं निरोधयेत् ।
दक्षपादेन तद् गुल्फे, सम्पीड्य यत्नतः सुधीः।। शनैः शनैश्चलयेत्, पाणियोनिमाकुंचयेच्छनैः जालंधरे धारयेत् प्राणं, महाबन्धोनिगद्यते॥
(क) घेरण्ड संहिता, 3/18-19
(ख) शिवसंहिता, 4/37-39
(ग) हठयोग प्रदीपिका, 3/19-21 28. योगतत्त्वोपनिषत्, 112-115 29. घेरण्ड संहिता, 3/20 30. (क) आसन प्रणायाम मुद्रा बन्ध, स्वामी सत्यानन्द सरस्वती, पृ. 319
महाबंध समासाद्य, उड्डीयान कुम्भकं चरेत् । महावेधः समाख्यातो, योगिना सिद्धिदायकः ॥
(ख) घेरण्ड संहिता, 3/22
(ग) शिवसंहिता, 4/43 (घ) योगतत्त्वोपनिषत्, 116-117
(च) हठयोग प्रदीपिका, 3/26