SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विशिष्ट अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं की रहस्यपूर्ण विधियाँ...119 घुटनों का स्पर्श कर्णपटलों, कन्धों एवं भूमि से हो । तत्पश्चात पैरों एवं सिर के चारों ओर हाथों को मजबूती से लपेटते हुए दोनों पाँवों को कण्ठ के पीछे की ओर ले जायें तथा उन्हें परस्पर मिलाकर हाथों से बांध दें इसे पाशिनी मुद्रा कहते हैं। 78 पैरों को उठाते समय धीरे-धीरे गहरा श्वास लें । • पाशिनी जैसी मुद्रा बन जाये, तब चेतना को मणिपुर चक्र (नाभि के पिछले भाग) पर केन्द्रित करें। शरीर को अधिकाधिक शिथिल करने का प्रयास करें। संभावित क्षमतानुसार वर्णित स्थिति में रहें । • थोड़ी देर पश्चात श्वास को बहार की ओर छोड़ते हुए, अपने अंगों को पूर्व अवस्था में ले आयें। यह एक आवृत्ति हुई । निर्देश 1. इस अभ्यास के दरम्यान पूरे समय शरीर को शिथिल रखें। 2. पाशिनी मुद्रा के मूल स्वरूप में अंतर्कुम्भक की अवधि बढ़ाते जायें। 3. पीठ की मांसपेशियों को अधिक श्रम न हो, उस अवस्था तक 8 या 10 बार पुनरावृत्ति करें। सुपरिणाम पाशिनी मुद्रा का मूल्य कई दृष्टियों से है। • महर्षि घेरण्ड के मतानुसार यह प्रक्रिया शरीर को बलवान बनाती हैं। जो इसके अभ्यास में सफल हो जाता है वह अद्भुत एवं दुरुह कार्यों को करने में भी घबराता नहीं। क्योंकि इस मुद्राभ्यास से अपूर्व शक्ति का जागरण और संचार होता है। इसकी मदद से शारीरिक और मानसिक सभी दोष दूर हो जाते हैं। अतः सिद्धि फल के आकांक्षी योगी पुरुषों को प्रयत्न पूर्वक इसका अभ्यास करना चाहिए। 79 • शरीरविज्ञों के अनुसार इस मुद्राभ्यास से नाड़ी संस्थान में संतुलन एवं स्थिरता आती है। · मेरुदण्ड एवं उसके चारों ओर की नाड़ियाँ क्रियाशील बनती है। पृष्ठ एवं उदरस्थ अंगों का समुचित व्यायाम हो जाता है। प्रजनन अंगों में शक्तिवर्धन होता है। उदर प्रदेश के अंगों, विशेषकर वृक्क, यकृत एवं क्लोम के कार्यों को व्यवस्थित करता है एवं उदरस्थ माँसपेशियों को शक्तिशाली बनाता है। अजीर्णादि रोगों को दूरकर पाचन शक्ति बढ़ाता है। संग्रहीत चर्बी की मात्रा को
SR No.006257
Book TitleYogik Mudrae Mansik Shanti Ka Safal Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy