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118... यौगिक मुद्राएँ : मानसिक शान्ति का एक सफल प्रयोग 18. पाशिनी मुद्रा
संस्कृत व्याकरण के अनुसार पश् धातु और णित + ल्युट् + इनि प्रत्यय से पाशिनी शब्द की उत्पत्ति हुई है। पाश शब्द अनेकार्थक है किन्तु यहाँ डोरी अथवा बांधना अर्थ ग्रहण किया गया है।
जिस प्रकार किसी वस्तु को डोरी से बांध दिया जाये तो वह सुरक्षित रहती है बिखरती नहीं, उसी प्रकार इस मुद्रा में दोनों पाँवों को कण्ठ के पीछे की ओर ले जाकर हाथों से बांध दिया जाता है। जिससे शारीरिक शक्ति संग्रहीत होकर उसे बलवान बनाती है तथा आध्यात्मिक शक्ति असत्कर्म से सत्कर्म की ओर प्रवृत्त होकर जीवद्रव्य के ज्ञान आदि गुणों की सुरक्षा करती है। पाशिनी मुद्रा का उद्देश्य अर्जित शक्तियों का संग्रह और सुषुप्त शक्तियों को जागृत करना है।
पाशिनी मुद्रा विधि
• सर्वप्रथम पीठ के बल लेट जाईये। हाथों की मुट्ठियाँ नितम्बों के नीचे रखें। • फिर दोनों पाँवों को उठाते हुए अपने से आधा मीटर दूर रखें। • फिर इन्हें घुटनों से मोड़िये। • तदनन्तर जांघों को छाती के इतने समीप लायें कि