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विशिष्ट अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं की रहस्यपूर्ण विधियाँ ...113 आम्भसी धारणा • सुविधाजनक आसन में बैठ जायें।
• फिर अर्धचन्द्र या कुन्द के समान (जल तत्त्वीय) श्वेतवर्णी वकार बीज को और विष्णुदेवता को योगबल से हृदय में प्रकट करें तथा एकाग्र चित्त से पाँच घड़ी (दो घंटा) पर्यन्त कुंभक करें।
• कुंभक की स्थिति में बीज मन्त्र एवं देवता के स्मरण पूर्वक उन्हें सिद्ध करें।
• तत्पश्चात मन्द गति से रेचक करते हुए पूर्व अवस्था में लौट आना आम्भसी धारणा मुद्रा है।72
आग्नेयी धारणा
• मनोनुकूल अवस्था में बैठ जायें। • तत्पश्चात इन्द्रगोप कीट के समान लालवर्णी (आग्नेय तत्त्वीय) रकार बीज को त्रिकोण आकृति में और रूद्र देवता को योगबल से हृदय में आविर्भूत करें तथा एकाग्रचित्त पूर्वक पांच घड़ी पर्यन्त श्वास को भीतर में रोककर रखें। • तदनन्तर निरुद्ध श्वास को छोड़ते हुए अपनी मूल अवस्था में प्रत्यावर्तित होना आग्नेयी धारणा मुद्रा है।73
वायवी धारणा
• ध्यान के किसी भी साधित आसन में बैठ जायें। - तत्पश्चात अंजन और धएँ के समान श्यामवर्णी (वाय तत्त्वीय) यकार बीज का और ईश्वर देवता का स्मरण करें। फिर योगबल से स्वयं के हृदय में अवधारित करें। - फिर इस तत्त्व को सिद्ध करने के लिए पाँच घड़ी तक स्थिर चित्त से कुम्भक करें। उसके बाद रेचक क्रिया द्वारा सामान्य स्थिति में आ जाना वायवी धारणा मुद्रा है।74
आकाशी धारणा
• किसी भी अभ्यास साध्य सर्वोत्तम आसन में स्थिर हो जायें। फिर समुद्र के शुद्धजल की भाँति शुभ्रवर्णी (आकाश तत्त्वीय) हकार बीज को और सदाशिव देवता को हृदय पटल पर संस्थित करें। फिर इस धारणा का शुभ फल पाने के लिए पाँच घड़ी तक कुंभक करना तथा तत्त्व देवता का निश्चल होकर ध्यान करना आकाशी धारणा मुद्रा है।75 निर्देश 1. इस मुद्राभ्यास के लिए प्रात:काल एवं सन्ध्या काल उपयुक्त प्रतीत होता
है क्योंकि यह कष्ट साध्य प्रक्रिया है। श्वास रोकने के लिए शरीर में हल्कापन आवश्यक है और वह दोनों सन्ध्याओं में संभव हो सकता है।