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________________ 114... यौगिक मुद्राएँ: मानसिक शान्ति का एक सफल प्रयोग 2. यह अभ्यास दीर्घावधि की अपेक्षा रखता है अतः साधक को धीर, वीर, साहसी, आशावादी वगैरह गुणों से युक्त होना चाहिए। 3. यदि अनुकूलता हो तो इसे एकान्त स्थान पर नि:शब्द वातावरण में प्रयुक्त करें। 4. ध्यान साधना में निपुणता प्राप्त करने वाले अथवा अभ्यस्त व्यक्ति ही इस मुद्रा को सरलता पूर्वक कर सकते है क्योंकि एकाएक चित्त की एकाग्रता बढ़ाना एवं लम्बी अवधि तक श्वास को रोक पाना संभव नहीं हो पाता । 5. उत्कृष्ट कोटि के साधक पुरुष ही पंचधारणा जैसी कठिन मुद्राओं का प्रयोग करते है तथा अपनी साधना में निखार लाते हुए अति शीघ्र ही साध्य को वर लेते हैं। यह साध्य सिद्धि का अनन्तर कारण है । जो कोई निकट समय में ही सर्व कर्मों से मुक्त होना चाहते हों, वे निश्चित ही इस अभ्यास को श्रद्धा सुविधि युक्त करें | सुपरिणाम • घेरण्ड संहिता के अनुसार पृथ्वी धारणा को सिद्ध करने वाला साधक पृथ्वी को विजय करने वाला होता है अर्थात पृथ्वी से सम्बन्धित किसी वस्तु से उसको मृत्युभय नहीं होता। किसी तरह का उपद्रव हो या मारणांतिक कष्ट, उस व्यक्ति के मनोदैहिक जीवन को हानि नहीं पहुँचाता। इस मुद्रा के फलस्वरूप वह मृत्युंजयी होकर पृथ्वी पर विचरण करता है । • आम्भसी धारणा के अभ्यास से दुःसह ताप और पाप नष्ट होता है। साथ ही इस मुद्रा का ज्ञाता पुरुष भीषण गहरे जल में गिर कर भी मृत्यु को प्राप्त नहीं होता, वह जल तत्त्वजयी हो जाता है। वस्तुतः यह मुद्रा गुप्त रखने योग्य है जो कोई इसे प्रकट कर लेता है उसकी सिद्धि नष्ट हो जाती है। • आग्नेयी धारणा के अभ्यासी व्यक्ति को किसी तरह का काल भय नहीं रहता और अग्नि से किसी प्रकार की हानि नहीं होती। यदि साधक अत्यन्त प्रज्वलित अग्नि में भी जा पड़े तो इस मुद्रा के प्रभाव से मर नहीं सकता है। • वायवी धारणा नाम की मुद्रा के अभ्यास से साधक को आकाश-गमन की शक्ति प्राप्त होती है और वायु से उसकी मृत्यु नहीं हो सकती । इस तरह यह मुद्रा जरा-मृत्यु को नष्ट करने वाली और आकाश में उड़ने का सामर्थ्य प्राप्त करवाती है।
SR No.006257
Book TitleYogik Mudrae Mansik Shanti Ka Safal Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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