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विशिष्ट अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं की रहस्यपूर्ण विधियाँ ...
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15. शाम्भवी मुद्रा (प्रथम प्रकार )
शाम्भवी का अर्थ है - शंभु (शिव) की पत्नी, शक्ति, तेजोबल, मनोबल आदि। पौराणिक ग्रन्थों में इस मुद्रा के अनेक प्रतीकात्मक अर्थ भी उल्लिखित हैं। इतर परम्पराओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि शंभु ने शाम्भवी को इस मुद्रा की दीक्षा देते हुए कहा था कि आत्म सजगता को विकसित करने के लिए इस मुद्रा का निष्ठापूर्वक अभ्यास करना। इस मुद्रा का दूसरा नाम 'भ्रूमध्यदृष्टि मुद्रा' भी है, क्योंकि दोनों भौंहों के मध्य दृष्टि को केन्द्रित करते हुए यह मुद्रा की जाती है। जैन परम्परानुसार ध्यान की विभिन्न पद्धतियों में से यह एक है । सामान्यतः इस मुद्रा का उद्देश्य शंभु (परमचेतना - आत्मसत्ता) का साक्षात्कार करना है ।
विधि
• किसी सुखद आसन में बैठ जायें। फिर ज्ञानमुद्रा अथवा चिन्मुद्रा में दोनों हथेलियों को घुटनों पर रखते हुए थोड़ी देर के लिए आंख बंद कर लें और
शाम्भवी मुद्रा - 1