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108... यौगिक मुद्राएँ : मानसिक शान्ति का एक सफल प्रयोग
शरीर को शिथिल कर दें।
• तत्पश्चात खुली आँखों को भ्रूमध्य पर केन्द्रित करने का प्रयास सिद्ध हो जाने पर परमात्मा का दर्शन करना शाम्भवी मुद्रा है।68 निर्देश 1. हमारी दृष्टि भ्रूमध्य पर केन्द्रित हो सके, उसके लिए प्रारम्भ में अधिक से
अधिक ऊपर देखने का प्रयत्न करें। नि:संदेह भ्रूमध्य पर दृष्टि को केन्द्रित करना कठिन कार्य है क्योंकि सामान्यत: हम ऐसा नहीं करते हैं और न ही यह भाग दृष्टि सीमा के अन्तर्गत आता है तथापि अपनी आँखों को यथासंभव भ्रूमध्य की दिशा में अंदर तथा ऊपर की ओर केन्द्रित करें। इस प्रकार दोनों आँखों का भ्रूमध्य की ओर अधिकाधिक अभिमुख होना
जरूरी है। 2. मस्तक को स्थिर रखें। 3. विचारों को रोकने का ख्याल रहे। 4. यदि आप उपरोक्त प्रक्रिया को ठीक रीति से सम्पन्न करते हैं तो भौंहों का
द्विवक्रीय प्रतिबिम्ब एक-दूसरे से मिलता-जुलता दृष्टिगोचर होगा। ये दोनों नासिका के ऊपरी भाग पर अंग्रेजी के 'वी' अक्षर की भाँति एकदूसरे से मिलते दिखलाई पड़ेंगे। अभ्यासी साधक को इस मिलन-बिन्दू के प्रति सजग रहना है क्योंकि लगभग यही भ्रूमध्य का मध्य भाग है। यदि आपको यह बिन्दू दिखाई नहीं पड़ता तो समझिये कि आपकी आँखें ठीक से भ्रूमध्य की ओर अभिमुख नहीं है। बिन्दू के लिए आँखों पर अनावश्यक जोर न लगायें। सहज तरीके से जितनी देर अभ्यास कर
सकें, करें। 5. अभ्यास करते वक्त कुछ सैकिण्डों में ही तनाव का अनुभव हो तो आँखों
को थोड़ी देर के लिए शिथिल छोड़ दें तत्पश्चात पुन: अभ्यास प्रारंभ
करें। इस तरह धीरे-धीरे भ्रूमध्य दृष्टि की अवधि को बढ़ायें। 6. जब आप लगभग एक मिनट तक सहज रूप से दृष्टि को भ्रूमध्य पर
टिकाये रखने की क्षमता प्राप्त कर लें तब अपने स्वरूप का चिंतन करें। 7. जब खुली आँखों से शाम्भवी मुद्रा करने में निष्णात हो जायें, तब इसी