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106... यौगिक मुद्राएँ : मानसिक शान्ति का एक सफल प्रयोग है इससे शक्ति एवं दर्शन केन्द्र भी जागृत होते हैं। प्रजनन एवं पीयूष ग्रन्थियाँ तथा अग्नि एवं पृथ्वी तत्त्व संतुलित रहते हैं।
• आत्मानुभूति की उच्च अवस्था में दिव्य शक्ति को ग्रहण करने के लिए भी यह मुद्रा उपयोगी है।
• मानसिक पहलू से विचार करें तो नासिका के अग्रभाग पर अपनी दृष्टि स्थिर करने से मन के विक्षेप एवं द्वंद शांत होते हैं। इसके साथ ही इड़ा और पिंगला नाड़ियों में संतुलन की स्थिति आने से अंतर्मुखी एवं बहिर्मुखी क्रियाओं में भी संतुलन आता है।
• चीन के धर्मग्रन्थों में कहा गया है कि जिस व्यक्ति की दृष्टि नासिका के अग्रभाग पर स्थिर नहीं होती, तो समझिये उसकी आँखें बहुत ज्यादा खुली हुई है और वह व्यक्ति उन्हें बाह्य जगत की ओर ले जाने की गलती कर रहा है। परिणामस्वरूप वह बाह्य घटनाओं में आसानी से उलझ जाता है। इसके विपरीत जब आँखें बहत ज्यादा बंद होती हैं तो व्यक्ति उन्हें आंतरिक जगत की ओर उन्मुख होने देने की गलती करता है तथा परिणामस्वरूप आसानी से दिवास्वप्नों में खो जाता है। जब पलकें सही रूप से आधी बंद की जाती है और नासिका का अग्रभाग दिखाई पड़ता है तो वही उपयुक्त तरीका है।67 ।
. नासिकाग्र दृष्टि करने के पीछे एक बहुत बड़ा महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि इससे इड़ा और पिंगला नाड़ियाँ संतुलित होने से सुषुम्ना नाड़ी भी जागृति की ओर उन्मुख होती है। यदि इस अभ्यास में दक्षता प्राप्त कर ली जाये तो सीधे ध्यान का मार्ग खुल जाता है। माण्डुकी मुद्रा में नासिकाग्र दृष्टि के अभ्यास का यही महत्त्व है।
• साधना की दृष्टि से इस मुद्राभ्यास काल में गन्ध के प्रति चेतना को स्थिर रखने की जो बात पूर्व में कही गई है और इसी के साथ मूलाधार चक्र जागृत होता है ऐसा कहा गया है। इसके पीछे मूल तथ्य यह है कि मूलाधार चक्र एवं गंध शक्ति में परस्पर निकट एवं निश्चित सम्बन्ध है।