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विशिष्ट अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं की रहस्यपूर्ण विधियाँ ...105 'मण्डूक' के साथ 'योग' शब्द जोड़कर भाव प्रधान अर्थ किया गया है। तदनुसार जिसमें साधक मेंढ़क की भाँति निश्चल होकर समाधिस्थ होता है वह मण्डूक योग कहलाता है।
इस अर्थ के अनुसार कहा जा सकता है कि मांडुकी मुद्रा का अभ्यास समाधि भाव की अभिवृद्धि एवं निर्विकल्प स्थिति की अनुभूति करने के प्रयोजन से किया जाता है।
विधि
• इस मुद्रा के लिए विशेष उपयोगी भद्रासन में बैठ जायें। फिर मुख को बन्द करके तालु स्थान पर जिह्वा को घुमाते हुए तथा जिह्वा द्वारा सहस्रार चक्र से टपकते हुए सुधा रस का धीरे-धीरे पान करना माण्डुकी मुद्रा है।
• दूसरी मान्यतानुसार भद्रासन में स्थिर होकर शनैः शनैः पूरक और रेचक करते हुए दृष्टि को नासिका के अग्रभाग पर स्थिर करने का अभ्यास करना एवं हर प्रकार की गन्ध पर चेतना का ध्यान केन्द्रित करना माण्डुकी मुद्रा है।65 निर्देश 1. इस मुद्रा का अभ्यास सहज रूप से जितने समय तक कर सकें, करें। 2. नेत्रों पर तनाव न आने दें। 3. कुछ महिनों के बाद अभ्यास की परिपूर्णता हेतु समय में वृद्धि करें।
4. इस अभ्यास में श्वास की गति गहरी होनी चाहिये। सुपरिणाम
इस मुद्रा का सम्यक अभ्यास किया जाए तो कई तरह के अच्छे परिणाम हासिल होते हैं- • शारीरिक दृष्टि से बली-पलित रोग, शरीर पर पड़ने वाली झुर्रिया एवं बालों का सफेद होना दूर होता है तथा स्थायी यौवन की प्राप्ति होती है।66
• अध्यात्म दृष्टि से जिह्वा पर अमृत रस का उत्पादन होता है, जो अभ्यास साधित है। यह अमृत साधक के स्वास्थ्य के लिए भी अत्यन्त हितकर और शरीर को बल प्रदान करने वाला होता है। __ • यह मुद्रा मूलाधार एवं आज्ञा चक्र को जाग्रत करने के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। मूलाधार आत्म शक्ति को प्रगट करने का प्रथम सोपान