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विशिष्ट अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं की रहस्यपूर्ण विधियाँ ...99
शत्तिश्चालिनी मुद्रा-4 • तदनन्तर उज्जायी प्राणायाम से रेचक करते हुये अवरोहण मार्ग में क्रमश: आज्ञा, विशुद्धि, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान एवं मूलाधार चक्रस्थानों के प्रति सजग होते जायें। (चित्र नं. 4)
• जब सजगता मूलाधार चक्र पर पहुँच जायें तो रेचक क्रिया पूर्ण कर लें।
• तत्पश्चात सिर को थोड़ा आगे झुकायें। इस क्रिया की यह प्रथम आवृत्ति है। इसके तुरन्त बाद द्वितीय आवृत्ति शुरु करें। इसकी कुल पाँच आवृत्तियाँ करनी चाहिए। निर्देश 1. महर्षि घेरण्ड के अनुसार कण्डलिनी शक्ति के जागरण में सहायक इस क्रिया को किसी के सामने न करके एकान्त में करना चाहिए जिससे कि
उसकी साधना गुप्त रह सके।54 2. इस मुद्रा के दौरान प्राण वायु और अपान वायु का मिलन कराया जाता
है जो कि अत्यन्त दुष्कर कार्य है। इस क्रिया में किसी तरह की गड़बड़ी