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विशिष्ट अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं की रहस्यपूर्ण विधियाँ ...91 5. इस अभ्यास काल में पूरे समय पीठ सीधी रखनी चाहिए। यह अत्यन्त
महत्त्वपूर्ण है। यदि पीठ सीधी नहीं रहेगी तो आप बिन्दू भेदन की
संवेदनाओं का अनुभव नहीं कर पायेंगे। 6. इस अभ्यास में वज्रोली मुद्रा का प्रयोग अवश्य करें, क्योंकि उसके
प्रभाव से इससे अनुभव की जाने वाली संवेदनाएँ बढ़ जाती है। इसी के साथ वज्रनाड़ी का संकुचन गुदा द्वार की मांसपेशियों के संकुचन बिना ही होने लगेगा। इससे उत्पन्न संवेदनाएँ उस विद्युत प्रवाह के समान होगी जो
वज्रनाड़ी में मस्तिष्क की ओर जाती है। 7. अपनी सजगता को बिन्दू भेदन के ठीक केन्द्र बिन्दू पर केन्द्रित करने का
प्रयत्न करें। इसकी संवेदना बिजली के झटके के समान होती है। 8. सम्पूर्ण अभ्यास काल में नासारन्ध्रों पर रखी हुई अंगुलियों को श्वास लेते
तथा छोड़ते समय हटा लेना चाहिए। सुपरिणाम
• योनि मुद्रा आत्माभिमुखी साधकों के लिए अत्यावश्यक एवं गोपनीय अभ्यास है।
• यह प्रक्रिया नाद योग की है जिसमें अभ्यासी साधक बिन्दू से उत्पन्न होने वाली विभिन्न सूक्ष्म ध्वनियों का अनुभव प्राप्त करता है। योनि मुद्रा (नाद योग) के अभ्यास के प्रारंभ में अभ्यासी को अनेक प्रकार की ध्वनियाँ सुनाई देती हैं; लेकिन अभ्यास की उच्च अवस्था में ये उत्तरोत्तर सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होती जाती है।43 जिससे अन्त में व्यक्ति आन्तरिक नाद सुन सकता है वही आत्मानुभूति अथवा आत्मसुख का आस्वाद होता है।
• जब मधुमक्खी फूलों में से मधु एकत्र करती है तब वह फूलों की सुगंध या दुर्गंध का विचार नहीं करती। उसी प्रकार नाद में लीन मन बाह्य बाधाओं से, विचारों से प्रभावित नहीं होता।14 इससे समता योग का विकास होता है। गहराई से अनुभव कर देखें तो पायेंगे कि मन जब नाद पर केन्द्रित हो जाता है तब वह पंखविहीन पक्षी के समान निष्क्रिय-निश्चल हो जाता है, इसे समाधि अवस्था का एक प्रकार कह सकते हैं।45 ___ • प्राचीन ग्रन्थों में नाद को चार भागों में विभाजित किया गया है। उनमें अन्तिम नाद ‘परानाद' का स्पर्श करना ही योनि मुद्रा की सिद्धि है। परानाद