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________________ विशिष्ट अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं की रहस्यपूर्ण विधियाँ ...81 दौरान पड़ने वाले दबाव में वृद्धि हो जाती है तथा गले का दबाव भी बढ़ जाता है परिणामस्वरूप उच्च रक्त-दाब कम होकर सामान्य अवस्था में आ जाता है इस कारण वर्णित मुद्रा के प्रयोग को खेचरी मुद्रा ऐसा नाम दिया गया है। इस मुद्रा का मुख्य प्रयोजन रोगी को निरोगता का लाभ प्रदान करते हुए प्राण-शक्ति का संग्रह एवं जड़-चेतन, शरीर-आत्मा, पुद्गल-जीव का भेद जानना है। विधि खेचरी मुद्रा करने की अनेक जटिल विधियाँ हैं, जिनमें जीभ की शल्य क्रिया भी करनी पड़ती है और जिसे सिद्ध करने में कुछ महिनों का समय भी लग जाता है। यहाँ खेचरी मुद्रा की अत्यन्त सरल क्रिया विधि का वर्णन कर रहे हैं • किसी भी अनुकूल आसन में बैठ जायें। • फिर मुँह को बन्द कर अधिक जोर न देते हुए जिह्वा के अग्रभाग को मोड़कर ताल के पिछले हिस्से की ओर इतना ले जायें कि उसकी निचली सतह ऊपरी तालु से स्पर्श करने लगे। यही खेचरी मुद्रा की मूल विधि है।31 निर्देश 1. सहज रूप से जीभ के अग्रभाग को जितना पीछे की ओर तान सकते हैं, तानें। 2. ख्याल रखें, अनावश्यक जोर न लगायें। 3. इस मुद्रा के उज्जायी प्राणयाम के साथ करें। 4. इस अभ्यास को करते हुए प्रारम्भ में कुछ देर असुविधा का अनुभव हो सकता है, परन्तु नियमित अभ्यास से दीर्घ समय तक सहज रूप से कर ... सकेंगे। 5. गुरु निर्देशन में ही इसका पूर्ण अभ्यास करें। 6. इस अभ्यास का योग अन्य योगासनों के साथ किया जा सकता है। 7. कुछ महिनों के अभ्यास के बाद श्वास की गति धीमी करते जायें। __ प्रतिमिनट 5 से 8 तक होनी चाहिए। सुपरिणाम • प्राचीन शास्त्रों में इस मुद्रा को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना गया है। इस मुद्रा का विधियुक्त प्रयोग अनेक दृष्टियों से लाभदायी सिद्ध होता है।
SR No.006257
Book TitleYogik Mudrae Mansik Shanti Ka Safal Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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