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________________ 82... यौगिक मुद्राएँ : मानसिक शान्ति का एक सफल प्रयोग • शारीरिक दृष्टि से मानव शरीर पर सूक्ष्म प्रभाव पड़ता है। • तालु के पीछे के रन्ध्र में अनेक दाब बिन्दु एवं ग्रन्थियाँ है, ये दैहिक क्रियाओं पर नियन्त्रण रखती हैं। इन ग्रन्थियों आदि पर प्रेशर पड़ने से सक्रिय बनी रहती है। • मोड़ी हुई जिह्वा के प्रभाव से ग्रन्थियों के रस-स्राव की क्रिया में वृद्धि होती है इससे स्वास्थ्य को अपूर्व लाभ पहुँचता है। लार की उत्पत्ति होने से भूखप्यास का अनुभव नहीं होता। • भूमि के नीचे अधिक अवधि तक रहने वाले साधक पुरुष प्रायः खेचरी मुद्रा में ही अभ्यस्त रहते हैं। इसके प्रभाव से इच्छित अवधि तक श्वास रोकने में समर्थ हो जाते हैं। • गले के दोनों ओर धमनी एवं जरानाल (केरोटिड साइनस) नामक दो विशेष अंग होते हैं। इनका कार्य रक्त प्रवाह एवं उसके दबाव पर नियंत्रण रखना है। यदि रक्त-दाब किसी तरह घट जाता है तो इसका पता ये दोनों केरोटिड साइनस ही लगाते हैं तथा तत्सम्बन्धी आवश्यक संदेश मस्तिष्क केन्द्रों को भेजते हैं। मस्तिष्क पर इसकी प्रतिक्रिया तुरन्त होती है और वह हृदय की धड़कन तथा आर्टिरिओलस (नन्हें रक्त पात्र) की संकुचन दर को बढ़ा देता है। परिणामस्वरूप रक्त-दाब बढ़कर सामान्य अवस्था में आ जाता है। इसी प्रकार यदि रक्त-दाब बढ़ जाता है तो ये करोटिड उसका पता लगाते हैं और मस्तिष्क तक सूचना पहुंचाते हैं। इस परिस्थिति के निराकरण हेतु ठीक विपरीत कदम उठाया जाता है। • खेचरी मुद्रा के दौरान गले में स्थित इन दोनों साइनस पर प्रभाव पड़ता है इसके कारण दोनों साइनस पर इस प्रकार की प्रतिक्रिया होती है। ___ • खेचरी मुद्रा को उज्जायी प्राणायाम पूर्वक किया जाए तो इसका प्रभाव भौतिक, मानसिक एवं बायोप्लाज्मिक स्तर पर होता है। • इस मुद्राभ्यास में गहरे या मंद श्वास के फलस्वरूप मन और शरीर तुरन्त शान्त एवं शिथिल हो जाते हैं तथा बायोप्लाज्मिक शरीर भी संतुलित हो जाता है। • इसके अतिरिक्त गले से निकलने वाली ध्वनि के प्रभाव स्वरूप हमारा सम्पूर्ण व्यक्तित्व सौम्य हो जाता है। यदि कोई भी व्यक्ति अन्य विचारों पर से
SR No.006257
Book TitleYogik Mudrae Mansik Shanti Ka Safal Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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