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विशिष्ट अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं की रहस्यपूर्ण विधियाँ ...79 निर्देश 1. इस मुद्रा का समुचित अभ्यास करने हेतु नियमित 12 आवृत्तियाँ करनी
चाहिए। इसे पूर्ण करने में साधारणत: 10 मिनट का समय लगता है। 2. महावेध मुद्रा का अभ्यास महामुद्रा के तुरन्त बाद और माण्डुकी मुद्रा के
पूर्व करना चाहिए। 3. महामुद्रा और महावेध मुद्रा दोनों ही श्रमसाध्य अभ्यास है अत: यदि
आवश्यकता हो तो महामुद्रा के पश्चात कुछ विश्राम कर महावेध मुद्रा का अभ्यास करें। इस विश्राम काल में नेत्रों को बंद रखते हुए अपनी
सहज श्वास के प्रति सजग रहें। सुपरिणाम ___ • अभ्यासी साधकों के निर्देशानुसार महावेध मुद्रा भौतिक एवं वैयक्तिक चेतना उभय दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
• महर्षि घेरण्ड इस मुद्रा का आकलन करते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार पुरुष के बिना स्त्री का रूप, यौवन, लावण्य व्यर्थ है। उसी प्रकार महावेध के बिना मूलबन्ध और महाबन्ध भी निष्फल है। साथ ही प्रतिदिन महावेध के साथ महाबन्ध एवं मूलबन्ध करने वाले योगी सब योगियों में श्रेष्ठ माने जाते हैं। उन साधक पुरुषों को वृद्धावस्था घेरती नहीं और न ही उन्हें मृत्यु का भय रहता है।
• किन्हीं के मतानुसार यह अत्यन्त शक्तिशाली प्रयोग है इसके माध्यम से सहजतया आत्म स्वभाव में रमणता की जा सकती है तथा परमात्म स्वरूपी शक्ति से सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है।
• यहाँ वेध से तात्पर्य वेधना या छेदना है। एक अन्य अर्थ के अनुसार इस प्रयोग में चेतना की सजगता एवं जागरुकता के द्वारा चक्रों एवं चेतना के अवरोधक मार्गों को वेधा जाता है। जिसके परिणामस्वरूप चेतना शक्ति को सम्यक पथ का बोध होता है और वह उस ओर उन्मुख हो जाती है।
• यद्यपि महावेध मुद्रा शारीरिक अभ्यास है किन्तु इनका प्राणिक स्तर पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। इसका विशेष रूप से निम्न तीन केन्द्रों पर प्रभाव पड़ता है
1. मूलाधार चक्र 2. मणिपुर चक्र और 3. विशुद्धि चक्र। महावेध क्रिया द्वारा इन चक्रों में शक्ति की वृद्धि होती है। इससे मानसिक