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________________ विशिष्ट अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं की रहस्यपूर्ण विधियाँ ...75 • फिर कंधों को शिथिल करते हुए, हाथों को बाहर की ओर मोड़ते हुए एवं धीरे से सिर को ऊपर उठाते हुए श्वास बाहर छोड़ना जालंधर बंध कहलाता है। महाबंध मुद्रा की एक अन्य विधि भी है। तदनुसार बायें पैर की एड़ी से योनि स्थान को दबायें और दाहिने पाँव को सीधा फैला दें। फिर दोनों हाथों से दायें पांव के अंगूठे को दृढ़तापूर्वक पकड़ लें। फिर उपरोक्त जालंधर बंध लगाते हुए पूरक (श्वास लेना), कुंभक (श्वास रोकना) और रेचक (श्वास छोड़ना) करना द्वितीय महाबंध मुद्रा है।28 इस अभ्यास को बायें अंग से करने के पश्चात दाहिने अंग से करें। फिर पुन: पुन: बायां-दाहिना, बायां-दाहिना ऐसी पुनरावृत्ति करते रहें। निर्देश 1. आप सुविधाजनक रूप से महाबंध मुद्रा की जितनी आवृत्तियाँ कर सकें, करें। नये अभ्यासियों को क्रमश: आवृत्तियों की संख्या बढ़ानी चाहिए। प्रारम्भ में पांच आवृत्तियाँ करें और धीरे-धीरे संख्या बढ़ाते जाये। 2. जब तक ठुड्डी या भुजाओं को जकड़न से मुक्त न कर दें, तब तक किसी भी हालत में श्वास अंदर या बाहर न करें। 3. थोड़े समय के बाद धीरे-धीरे कुंभक की लम्बाई बढ़ाते जायें। 4. यह अभ्यास प्रात:काल अथवा शरीर के हल्कापन के समय करना उपयुक्त है। सुपरिणाम • महाबंध मुद्रा का अभ्यास व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक रूप से लाभ पहुंचाता है। • शारीरिक स्तर पर यह शरीर में प्राण प्रवाह को नियंत्रित कर मानसिक शिथिलीकरण प्रदान करता है। कण्ठ (ग्रीवा) की शिरानालों पर दबाव पड़ने से हृदय की गति कम होती है इससे मन संतुलित हो सकता है। • इस बंध से श्वास-नली बंद हो जाती है और ग्रीवा में स्थित विभिन्न अंगों पर दबाव पड़ता है। इससे विशेषत: ग्रीवा की गुहिका में स्थित थॉयराइड़ ग्रन्थि की मालिश हो जाती है। इस ग्रंथि पर संपूर्ण शरीर आश्रित है।। • इससे श्रेणि प्रदेश में रक्त की आपूर्ति बढ़ जाती है और सभी स्नायु सक्रिय हो जाते हैं। परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में निहित अंगों के स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।
SR No.006257
Book TitleYogik Mudrae Mansik Shanti Ka Safal Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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