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________________ विशिष्ट अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं की रहस्यपूर्ण विधियाँ ...71 बायें पैर की एड़ी से गुदामार्ग को दबाएँ और बलपूर्वक अपान वायु को आकर्षित करके ऊपर की ओर गतिशील करें यानी मूलाधार चक्र की निर्धारित मांसपेशियों को संकुचित करते हुए ऊपर की ओर खींचें। यह मूलबंध की मुख्य स्थिति है इस संकुचन को यथा संभव कायम रखें। 20 • तत्पश्चात उस संकुचन को ढीला करते हुए जालंधर बंध को मुक्त कर दें। फिर मस्तक को ऊपर उठाकर रेचक करें यह मूलबंध कहलाता है । निर्देश 1. मूल बंध के अभ्यास हेतु पुरुषों के लिए सिद्धासन तथा महिलाओं के लिए सिद्धयोनि आसन सर्वोत्तम है। यदि उपरोक्त आसनों में नहीं बैठ सकते है तो ध्यान के किसी अन्य आसन में बैठ जायें। 2. दोनों घुटने जमीन से सटे रहने चाहिए । 3. यदि पेरिनियम की मांसपेशियों पर पर्याप्त नियंत्रण न होने के कारण मूलबंध लगाने में कठिनाई होती हो तो उसके बदले में नियमित रूप से अश्विनी मुद्रा का अभ्यास करें। जब पेरिनियम की मांसपेशियों पर आवश्यक नियंत्रण प्राप्त हो जाये तब अश्विनी मुद्रा का अभ्यास बंद करके मूलबंध का अभ्यास प्रारंभ कर दें। 5. इस बंध की अंतिम स्थिति में जाते समय श्वास क्रिया पर सजगता टिकी रहे। अंतिम स्थिति में हमारी सजगता पेरिनियम के संकुचित स्थान पर रहनी चाहिए। 6. अंतिम स्थिति में सुख पूर्वक जितने समय तक कुंभक कर सकते हैं, करें। इस अभ्यास की यथासंभव अधिकतम आवृत्तियाँ की जा सकती है। सुपरिणाम • यह योग और तंत्र साधना पद्धतियों का महत्त्वपूर्ण अभ्यास है। इस मुद्रा को आध्यात्मिक और शारीरिक दोनों दृष्टियों से उपादेय माना गया है। • मूल बन्ध का मुख्य अर्थ है गुह्य प्रदेश का संकोच । • घेरण्ड संहिता के अनुसार मूलबन्ध का अभ्यास करने से वृद्धावस्था नष्ट होती है, मरुत सिद्धि प्राप्त होती है तथा अभूतपूर्व लक्ष्य की संसिद्धि होती है
SR No.006257
Book TitleYogik Mudrae Mansik Shanti Ka Safal Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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