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________________ 68... यौगिक मुद्राएँ : मानसिक शान्ति का एक सफल प्रयोग • फिर धीरे-धीरे कंधों को शिथिल करते हुए श्वास बाहर छोड़ें। सामान्य स्थिति में आ जायें। यह जालन्धर बंध कहलाता है।13 निर्देश ___ 1. जालंधर बंध अनेक आसनों में किया जा सकता है लेकिन सबसे अच्छा आसन पद्मासन, सिद्धासन और सिद्धयोनि आसन है। 2. यह अभ्यास जालंधर बंध लगाने के ठीक पहले श्वास बाहर छोड़कर भी किया जा सकता है। 3. इस अभ्यास काल में अपनी सजगता गले के क्षेत्र में बनाये रखें। इसी के साथ मानसिक रूप से कुंभक की लंबाई गिनते जायें। 4. जालंधर बंध के दौरान किसी भी हालत में श्वास अंदर या बाहर न करें, जब तक कि आप ठुड्डी और भुजाओं को जकड़न से मुक्त न कर दें तथा सिर ऊपर न उठ जायें। 5. धीरे-धीरे कुंभक की लम्बाई बढ़ाते जायें। 6. सुविधाजनक रूप से जितनी आवृत्तियाँ कर सकें, करें। 7. नये अभ्यासी क्रमश: आवृत्तियों की संख्या बढ़ाएँ। सुपरिणाम __ • हठयोग संबंधी ग्रन्थों में इस मुद्रा स्वरूप के साथ-साथ तज्जनित परिणामों का भी वर्णन किया गया है। • घेरण्ड संहिता में इसे महा मुद्रा की संज्ञा देते हुए मृत्यु की परम्परा को नष्ट करने वाला कहा गया है।14 • योग चूड़ामणि उपनिषद में पाँच महामुद्राओं का उल्लेख है। उपनिषतकार कहते हैं कि जो योगी महा मुद्रा, नभो मुद्रा, उड्डीयान बन्ध, जालन्धर बन्ध और मूलबन्ध को जानता है वह मोक्ष का अधिकारी होता है।15 • महर्षि घेरण्ड के अनुसार इस बन्ध के सध जाने पर योगियों को सिद्धि प्राप्त होती है तथा इसका छह महीने अभ्यास करने से योगी की साधना सिद्ध हो जाती है।16 • शिवसंहिता में इसे देवताओं के लिए भी दुर्लभ बताया गया है। इसी के साथ कहा गया है कि जालंधर बंध के अभ्यास से तालुमूल (चन्द्रमण्डल) से
SR No.006257
Book TitleYogik Mudrae Mansik Shanti Ka Safal Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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