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विशिष्ट अभ्यास साध्य यौगिक मुद्राओं की रहस्यपूर्ण विधियाँ ...67
जालंधर बंध मुद्रा तात्पर्य है कि जिस अभ्यास के द्वारा गर्दन के क्षेत्र के प्राण प्रवाहों को रोका जाता है वह जालंधर बंध कहलाता है। ___ इस मुद्रा के द्वारा गर्दन से जाने वाली नाड़ियों के जाल को नियंत्रित कर, तालु मूल से निझरित चन्द्र रूपी अमृत रस को नाभि प्रदेश की ओर गमन करने से अवरूद्ध किया जाता है जिससे मृत्यु पर विजय पाई जा सकें। विधि
• जालंधर बंध के लिए सुविधाजनक आसन में बैठ जायें। • स्मरण रहें, दोनों घुटने जमीन से सटे हुए रहें।
• दोनों हथेलियों को घुटनों पर रखें। पूरा शरीर शिथिल कर दें। फिर दोनों नेत्रों को बंद करते हुए गहरा श्वास लें। श्वास को अंदर ही रोक दें।
• तत्पश्चात कण्ठ का संकोच करें और ठुड्डी को दृढ़तापूर्वक गले से लगा दें अर्थात छाती से सटाकर रखें। इससे सोलह स्थानों पर बंध हो जाता है।
• इस स्थिति में जितनी देर श्वास रोककर रख सकें, रखें।