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हिन्दू परम्परा सम्बन्धी विविध कार्यों हेतु प्रयुक्त मुद्राओं... ...33
विधि
____दायें हाथ को छाती या कंधे के स्तर पर धारण करते हुए हथेली को सामने की ओर अभिमुख करें तथा अंगुलियों को एकदम आराम से ऊपर की ओर फैलाने पर अर्चित मुद्रा बनती है।
यह अहायवरद मुद्रा या अभय मुद्रा के समान है।
अर्चित मुद्रा
लाभ
चक्र- मूलाधार एवं अनाहत चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं वायु तत्त्व प्रन्थिप्रजनन एवं थायमस ग्रन्थि केन्द्र- शक्ति एवं आनंद केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- मेरूदण्ड, गुर्दे, पाँव, हृदय, फेफड़ें, भुजाएं, रक्त संचरण तंत्र। 4. आवाहन मुद्रा
यज्ञादि अनुष्ठान में देवी-देवताओं को मंत्र द्वारा आदर पूर्वक आमन्त्रित करना आवाहन कहलाता है। आवाहन का शाब्दिक अर्थ है बुलाना, निमन्त्रण देना। यह मुद्रा याचना, विनती, प्रार्थना की सूचक है।