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32... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में विधि
दायें हाथ को कंधे की सीध में लाकर हथेली को बाहर की ओर करें, अंगुलियों को ऊपर दिशा में फैलायें और तर्जनी को किंचित झुकाने पर अराल मुद्रा बनती है। यह मुद्रा पताका मुद्रा के समान है।
अराल मुद्रा लाभ
चक्र- आज्ञा एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- आकाश तत्त्व ग्रन्थि- पीयूष एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्र- दर्शन एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंगमस्तिष्क, स्नायु तंत्र, आँख। 3. अर्चित मुद्रा ___अर्चित का शाब्दिक अर्थ होता है पूजित, सम्मानित। यह मुद्रा हिन्दू परम्परा में भगवान शिव के नटराज चतुरम नृत्य से सम्बन्धित है। इससे अभिवादन या वंदन का भाव दर्शाया जाता है। किसी का अभिवादन अथवा वंदन करने पर ही वह पूजित और सम्मानित कहलाता है अत: यह मुद्रा अपने नाम के अनुरूप है।