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हिन्दू एवं बौद्ध परम्पराओं में प्रचलित मुद्राओं का स्वरूप... ...291 सांजलि मुद्रा
सांजलि अर्थात अंजलि के साथ। जिस मुद्रा में अंजलि के साथ कुछ धारण किया जाता है अथवा अंजलि के रिक्त स्थान में कोई वस्तु रखी जाती है उस तरह की हस्त मुद्रा को सांजलि मुद्रा कहते हैं ।
यह मुद्रा हिन्दू एवं बौद्ध दोनों में प्रयुक्त होती है तथा अंजलि मुद्रा से सम्बन्धित है।
इसमें दोनों हाथों में प्रतिबिंब की भाँति मुद्रा बनती है।
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सांजलि मुद्रा
विधि
दोनों हथेलियों को जोड़कर अंगुलियों को ऊर्ध्व दिशा में फैलायें एवं हल्की सी झुकायें, फिर हथेलियों के मध्य पोले भाग में उपहार या किसी वस्तु को रखें, फिर अंगुलियों के अग्रभाग को ठुड्डी के स्तर पर टिकाने से सांजलि मुद्रा बनती है।
लाभ
चक्र - मूलाधार एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि - प्रजनन एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्र - शक्ति एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - मेरूदण्ड, गुर्दे, ऊपरी मस्तिष्क, आँख।