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292... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में
19. स्वकुचग्रह मुद्रा
कुच का अर्थ है- स्तन, हृदय, अनार आदि।27 यहाँ हृदय अर्थ अभीष्ट है। तदनुसार स्वयं के हृदय के आगे हाथ रखकर जो मुद्रा बनायी जाती है उसे स्वकुचग्रह मुद्रा कहते हैं। इस मुद्रा में दायें हाथ को दिल के ऊपर रखा जाता है अत: इस मुद्रा का स्वकुचग्रह नाम सार्थक है।
यह मुद्रा हिन्दू और बौद्ध दोनों परम्पराओं में प्रचलित है।
स्वयग्रह मुद्रा विधि ___ दायीं हथेली को मध्य भाग की तरफ दिल के ऊपर रखना स्वकुचग्रह
मुद्रा है।28
लाभ
चक्र- मणिपुर एवं विशुद्धि चक्र तत्त्व- वायु एवं अग्नि तत्त्व प्रन्थिएड्रीनल, पैन्क्रियाज, थायरॉइड एवं पेराथायरॉइड ग्रन्थि केन्द्र- तैजस एवं विशुद्धि केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचन तंत्र, नाड़ी तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँतें नाक, कान, गला, मुंह एवं स्वर यंत्र।