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276... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में
तैजस, शक्ति एवं ज्योति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग - पाचन तंत्र, नाड़ी तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँतें, मेरूदण्ड, गुर्दे, पाँव, आँख एवं मस्तिष्क । 9. कर्त्तरीहस्त मुद्रा
यह मुद्रा हिन्दू एवं बौद्ध परम्परा में समान रूप से प्रचलित है। यह एक हाथ से की जाती है। इस मुद्रा को विरोध और मृत्यु की सूचक माना है। मूर्ति सम्बन्धी उपकरणों को दिखाने के लिए भी इसका उपयोग होता है। इसकी विधि निम्न है -
विधि
दायीं हथेली को सामने की तरफ अभिमुख कर तर्जनी और मध्यमा को पृथकपृथक रूप से ऊपर फैलायें, कनिष्ठिका को किंचित मोड़ें तथा अनामिका के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से स्पर्श करवाने पर कर्तरीहस्त मुद्रा बनती है। 10
कर्तरीहस्त मुद्रा
लाभ
चक्र - अनाहत एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- वायु एवं आकाश तत्त्व ग्रन्थि - थायमस एवं पीयूष ग्रन्थि केन्द्र - आनंद एवं दर्शन केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- हृदय, फेफड़ें, भुजाएं, रक्त संचरण प्रणाली, स्नायु तंत्र,
आँख।