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________________ हिन्दू एवं बौद्ध परम्पराओं में प्रचलित मुद्राओं का स्वरूप......275 आनंद एवं शक्ति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग-कान, नाक, गला, मुँह, स्वर यंत्र, रक्त संचरण प्रणाली, हृदय, फेफड़ें, भुजाएं, मेरूदण्ड, गुर्दे एवं पाँव। 8. डमरू/डमरूहस्त मुद्रा ___ यह मुद्रा वज्रायना बौद्ध एवं हिन्दू परंपरा में एक जैसी है। इसे करण मुद्रा के समान माना गया है। डमरू हाथ में होने पर जो मुद्रा बनती है वह करण मुद्रा है। विधि ___ दायीं हथेली को सामने की तरफ करके तर्जनी और कनिष्ठिका को ऊपर उठायें, अनामिका और मध्यमा को हथेली के भीतर मोड़ते हुए उनके अग्रभागों को अंगूठे के प्रथम पोर से स्पर्श करवायें तथा कनिष्ठिका और तर्जनी के मध्य जो अन्तर है उसमें डमरु को Fit करने पर डमरू मुद्रा बनती है। डमरूवस्त मुद्रा लाभ चक्र- मणिपुर, मूलाधार एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- अग्नि, पृथ्वी एवं आकाश तत्त्व प्रन्थि- एड्रीनल, पैन्क्रियाज, प्रजनन एवं पिनियल ग्रन्थि केन्द्र
SR No.006255
Book TitleHindu Mudrao Ki Upayogita Chikitsa Aur Sadhna Ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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