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हिन्दू एवं बौद्ध परम्पराओं में प्रचलित मुद्राओं का स्वरूप......269 तरफ लाकर पुन: स्फूर्ति से नीचे की ओर ले जायें, इस तरह अंगुलियों का संचालन करते रहने पर वह अहायवरद मुद्रा कहलाती है।
अहायवरद मुद्रा लाभ
चक्र- मणिपुर एवं मूलाधार चक्र तत्त्व- अग्नि एवं पृथ्वी तत्त्व प्रन्थिएड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रन्थि केन्द्र- तैजस एवं शक्ति केन्द्र विशेष प्रभावित अंग- पाचनतंत्र, नाड़ीतंत्र, यकृत, तिल्ली, आँतें, मेरूदण्ड, गुर्दे, पांव। 3. अंजलि मुद्रा
अंजलि मुद्रा के विभिन्न प्रकारों में यह मुद्रा बौद्ध परम्परा में मुख्यतया वज्रायन उपासना में तथा हिन्दू परम्परा में भी प्रचलित है। ___ दोनों हथेलियों को मिलाकर बनाया हुआ संपुट अथवा किसी भी पदार्थ को देने की विधिवत प्रक्रिया अंजलि कहलाती है। यह मुद्रा अभिवादन या वंदन की सूचक है। मुद्रा स्वरूप के अनुसार यह किसी चित्र आदि को पकड़ने की मुद्रा