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________________ पूजोपासना आदि में प्रचलित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...255 दक्षिण हस्त कनिष्ठां, वामहस्त मध्यमया । बध्वा वामहस्त कनिष्ठिां, दक्षहस्त मध्यमया ।। बध्वा तयोर्नखदेशयोः, अंगुष्ठौ निक्षिपेत् ।। दोनों हाथों को आमने-सामने कर मध्यमाओं के द्वारा कनिष्ठिकाओं को पकड़ें, अनामिकाओं को सीधा रखें, उनके बाह्य भाग में दोनों तर्जनियों को सीधा रखें तथा अंगूठों को दण्डाकारवत सीधा रखते हुए मध्यमाओं के अग्रभाग से जुड़े रहने पर सर्वोन्मादिनी मुद्रा बनती है। 2. महांकुशा मुद्रा अस्यास्त्वनामिका युग्म, मधः कृत्वां कुशाकृतिः । तर्जन्या वपितेनैव, क्रमेण विनियोजयेत् ।। इयं महांकुशा मुद्रा, सर्वकामार्थ साधिनी ।। दोनों अनामिकाओं को अंकुशाकार करके अधोमुख करना तथा दोनों तर्जनियों को अंकुशाकार करके सम्मिलित करना, महांकुशा मुद्रा है। इस मुद्रा का प्रयोग कभी भी थोड़े से अभ्यास के बाद किया जा सकता है। यह सभी प्रकार की कामनाओं को पूर्ण करने वाली मुद्रा के रूप में प्रचलित है। महाकुंभ मुद्रा
SR No.006255
Book TitleHindu Mudrao Ki Upayogita Chikitsa Aur Sadhna Ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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