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254... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में 5. वर मुद्रा अधः स्थितो दक्षहस्तः प्रसृतो वरमुद्रिका।
दायीं हथेली को अधोमुख करते हुए प्रसरित करना वर मुद्रा है।
सुपरिणाम
वर मुद्रा चक्र- आज्ञा एवं अनाहत चक्र तत्त्व- आकाश एवं वायु तत्त्व केन्द्रज्योति एवं आनंद केन्द्र ग्रन्थि- पीयूष एवं थायमस ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग- निचला मस्तिष्क, आँख, हृदय, फेफड़ें, भुजाएँ एवं रक्त संचार तंत्र।
विविध मुद्राएँ 1. सर्वोन्मादिनी मुद्रा
सम्मुखौ तु करौ कृत्वा, मध्यमा मध्यमेनुजे । अनामिकेतु सरले, तदधस्तर्जनीद्वयं ।। दण्डकारी ततोङ्गुष्ठी, मध्यमान स्वदेश गौ । मुद्रैषोन्मादिनी नाम, क्लेदिनी सर्वयोषिताम् ।।