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पूजोपासना आदि में प्रचलित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...223 सामान्यत: इस मुद्रा का प्रयोग स्नान आरंभ करने से पूर्व किया जाता है। इसके पीछे रहस्यपूर्ण तथ्य यह है कि शरीर पर पानी डालते हुए किसी प्रकार से शारीरिक तत्त्वों में असंतुलन की स्थिति बन सकती है जबकि तत्त्व मुद्रा से असंतुलन पैदा नहीं होता। स्पष्ट है कि तत्त्व मुद्रा का प्रयोजन स्नान काल में पंच तत्त्वों को संतुलित बनाये रखना है। विधि ___ सर्वप्रथम स्नान योग्य स्थान पर योग्य आसन में बैठ जाएँ। तदनन्तर दोनों हाथों के अंगूठों के अग्रभागों को अनामिका अंगुलियों के अग्रभागों से संयुक्त करना तत्त्व मुद्रा है। सुपरिणाम ___ चक्र- विशुद्धि एवं सहस्रार चक्र तत्त्व- वायु एवं आकाश तत्त्व केन्द्रविशुद्धि एवं ज्ञान केन्द्र प्रन्थि- थायरॉइड, पेराथायरॉइड एवं पिनियल ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग- कान, नाक, आँख, गला, मुँह, स्वर यंत्र एवं ऊपरी मस्तिष्क।