SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 287
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पूजोपासना आदि में प्रचलित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...221 इस मुद्रा को सर्व प्रकार से रक्षा करने वाली मुद्रा के रूप में माना गया है। इसका दूसरा नाम माला मुद्रा भी है। विधि उपासना के लिए श्रेष्ठ एवं स्वयं के लिए अनुकूल आसन में बैठ जाएँ। तदनन्तर बाएँ हाथ को मुट्ठी के रूप में बाँधते हुए तर्जनी अंगुली को सीधी खड़ी रखें। फिर उसके अग्रभाग से अंगूठे के अग्रभाग को संस्पर्शित करने पर कुन्त मुद्रा बनती है। सुपरिणाम चक्र- मूलाधार, विशुद्धि एवं आज्ञा चक्र तत्त्व- पृथ्वी, वायु एवं आकाश तत्त्व केन्द्र- शक्ति, विशुद्धि एवं ज्योति केन्द्र ग्रन्थि- प्रजनन थायरॉइड, पेराथायरॉइड एवं पीयूष ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग- मेरूदण्ड, गुर्दे, पैर, कान, नाक, गला, मुँह, स्वर यंत्र, निचला मस्तिष्क एवं स्नायु तंत्र। 4. कुम्भ मुद्रा ____ दायें अंगूठे को बायें अंगूठे से संयुक्त कर शेष अंगुलियों की शिथिल मुट्ठी बांधना कुम्भ मुद्रा है। कुम्भ मुद्रा
SR No.006255
Book TitleHindu Mudrao Ki Upayogita Chikitsa Aur Sadhna Ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy