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196... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में तर्जनी अंगुली को कान की ओर इंगित करते हुए उसके समीप ले जाएँ। फिर कान से स्पर्श करवाते हुए अंगुली को गोलाकार घुमाएँ यह सौभाग्यदायिनी मुद्रा कहलाती है।
__सौभाग्यदायिनी मुद्रा सुपरिणाम- इस मुद्रा प्रभाव से भाग्य चमकता है, उत्तम भाग्य का उद्भव होता है, पुण्य कर्म के नये-नये आयाम खुलते हैं पुण्योदय से पुण्यसर्जन की परम्परा प्रवर्तित रहती है। अन्ततः पुण्य की पराकाष्ठा के रूप में स्वशक्ति को समग्र रूप से उद्घाटित कर लेता है।
तर्जनी अंगुली को गोलाकार घुमाने से विशिष्ट प्रकार की तरंगें उत्पन्न होती हैं और धीरे-धीरे मस्तिष्क के चारों ओर विशुद्ध आभामण्डल निर्मित हो जाता है।
इस मुद्रा में अग्नि तत्त्व का आकाश तत्त्व के साथ विशिष्ट संयोजन होने से हृदय विकार में फायदे होते हैं। हृदय सम्बन्धी बीमारियाँ ठीक होती हैं।
इस मुद्रा के प्रयोग से निम्नोक्त चक्र आदि भी प्रभावित होते हैं और उसके अच्छे फायदे भी देखे जाते हैं चक्र- मणिपुर एवं विशुद्धि चक्र केन्द्र- तैजस