________________
पूजोपासना आदि में प्रचलित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ... 197
एवं विशुद्धि केन्द्र ग्रन्थि - एड्रीनल, पैन्क्रियाज, थायरॉइड एवं पेराथायरॉइड ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग - पाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली, आँतें, नाड़ी तंत्र, नाक, कान, गला, मुँह एवं स्वर तंत्र।
कर न्यास सम्बन्धी मुद्राएँ
कर अर्थात हाथ, न्यास अर्थात स्थापित करना । विशिष्ट मंत्रों के उच्चारण करते हुए एक हाथ का दूसरे हाथ से स्पर्श करना अथवा दोनों हाथों को अधिवासित करने के लिए मन्त्र विशेष का स्थापन करना करन्यास मुद्रा है।
इस मुद्रा के द्वारा हस्तयुगल की रक्षा की जाती है क्योंकि पूजा-यज्ञादि शुभ कार्यों में हाथ की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती हैं। करन्यास मुद्रा के माध्यम से करयुगल को अभिमन्त्रित करने का अभिप्राय यह है कि इसे किसी तरह की हानि न पहुँच पायें। हिन्दू परम्परा में तत्सम्बन्धी छः मुद्राओं का प्रयोग किया जाता है। जो सचित्र निम्न हैं
प्रथम
दायें अंगूठे से बायें अंगूठे का स्पर्श करना अंगुष्ठ न्यास मुद्रा है। सुपरिणाम- सभी चक्र एवं पाँच तत्त्व समान रूप से प्रभावित होते हैं।
प्रथम