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________________ पूजोपासना आदि में प्रचलित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...195 विजय पाता है और योगी कहलाता है। बिन्दु का अनुभव न होने से साध्य सिद्धि में बाधा उत्पन्न होती है। बिन्दु स्तम्भन (बिन्दु अनुभव की उत्तरोत्तर साधना) से ओजस्विता, उत्साह, सामर्थ्य, बल और एकाग्रता की वृद्धि होती है। __ वज्रोली मुद्रा की साधना करने वाले साधक के शरीर से सुगंध आती है। यदि मन बिन्दु पर स्थिर रहने लगे तो उसे मृत्यु भय से छुटकारा हो जाता है। इस अभ्यास में मनःशक्ति नियंत्रित होने से जीवनदान मिलता है इसलिए सावधानीपूर्वक बिन्दु पर केन्द्रित रहना चाहिए। यह अध्यात्म जगत की बात हुई। भौतिक जगत के आधार पर ज्ञान मुद्रा के बहुत से फायदे इसमें होते हैं। इसके सिवाय आकाश, पृथ्वी एवं जल तत्त्व असंतुलन से होने वाले रोगों का शमन होता है। इस मुद्राभ्यास द्वारा निम्न चक्रादि के असन्तुलन से होने वाली गड़बड़ियाँ भी दूर होती हैं। चक्र- मणिपुर, अनाहत एवं सहस्रार चक्र केन्द्र- तैजस, आनंद एवं ज्योति केन्द्र ग्रन्थि- ऐड्रीनल, पैन्क्रियाज, थायमस एवं पिनियल ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग- पाचन तंत्र, रक्त संचरण तंत्र, नाड़ी तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँतें, हृदय, फेफड़ें, ऊपरी मस्तिष्क एवं आंख। 6. सौभाग्यदायिनी मुद्रा जिस मुद्रा के माध्यम से सौभाग्य का उदय होता है अथवा वह मुद्रा जो अच्छे भाग्य का निर्माण करती है, सुकृत कर्म के लिए उत्प्रेरित करती है, श्रेष्ठ भाग्य प्रदान करती है सौभाग्यदायिनी मुद्रा कहलाती है। सौभाग्य की दो कोटियाँ होती है- 1. बाह्य सौभाग्य- भौतिक वैभव, ऐश्वर्य, सत्ता-सम्पत्ति की समुपलब्धि बाह्य सौभाग्य है तथा 2. आभ्यन्तर सौभाग्य- आत्म शक्ति रूप अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तचारित्र की सम्प्राप्ति आभ्यन्तर सौभाग्य है। इस मुद्रा का अभ्यास आभ्यन्तर साम्राज्य की उपलब्धि के लिए किया जाता है। विधि किसी भी योग्य आसन में मन एवं तन को सुस्थिर कर लें। तदनन्तर चित्रानुसार बाएँ हाथ की मुट्ठी बांधते हुए तर्जनी अंगुली को सीधी रखें। फिर
SR No.006255
Book TitleHindu Mudrao Ki Upayogita Chikitsa Aur Sadhna Ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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