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पूजोपासना आदि में प्रचलित मुद्राओं की प्रयोग विधियाँ ...191 पर शारीरिक और मानसिक तनाव दूर होते हैं तथा आंतरिक उत्साह, देहस्फूर्ति, वैचारिक स्वस्थता में अभिवृद्धि होती है।
इस मुद्रा से निम्न चक्रादि के प्रभाव भी हासिल होते हैं
चक्र- स्वाधिष्ठान एवं मणिपुर चक्र तत्त्व- जल एवं अग्नि तत्त्व केन्द्रस्वास्थ्य एवं तैजस केन्द्र ग्रन्थि- प्रजनन, एड्रीनल एवं पैन्क्रियाज ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग- मल-मूत्र अंग, प्रजनन अंग, गुर्दे, पाचन संस्थान, यकृत, तिल्ली एवं आँतें। 3. त्रिखण्डा मुद्रा
त्रिखण्ड का शाब्दिक अर्थ होता है तीन खण्ड (भाग) से युक्त। जिस मुद्रा में अंतस्थ भावों को तदनुरूप हावभाव के साथ तीन खण्ड के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है उसे त्रिखण्डा मुद्रा कह सकते हैं। ___ सांकेतिक अर्थ की दृष्टि से तीन लोकों में पूजनीय वीतराग पद की प्राप्ति के निमित्त यह मुद्रा की जाती है।
त्रिखण्डा मुद्रा