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168... हिन्दू मुद्राओं की उपयोगिता चिकित्सा एवं साधना के संदर्भ में
___ यौगिक परम्परा की यह तथ्यभूत मुद्रा उपासकों द्वारा की जाती है। यह गायत्री जाप के पश्चात की जाने वाली 8 मुद्राओं में से प्रथम है। इसे पित्त, कफ
और आभ्यंतर संतुलन बनाये रखने में सहयोगी माना गया है। विधि
दर्शाए चित्रानुसार इस मुद्रा में दोनों हाथों को भूमि से समानान्तर रखते हुए दाहिने हाथ की अनामिका को बायें हाथ की कनिष्ठिका के अग्रभाग से तथा दाहिने हाथ की कनिष्ठिका को बायें हाथ की अनामिका के अग्रभाग से योजित
करें।
इसी तरह दाहिने हाथ की मध्यमा को बायें हाथ की तर्जनी के अग्रभाग से तथा दाहिने हाथ की तर्जनी को बायें हाथ की मध्यमा के अग्रभाग से स्पर्शित करने पर सुरभि मुद्रा बनती है।26 लाभ
चक्र- मणिपुर एवं स्वाधिष्ठान चक्र तत्त्व- अग्नि एवं जल तत्त्व केन्द्रतैजस एवं स्वास्थ्य केन्द्र ग्रन्थि- एड्रीनल, पैन्क्रियाज एवं प्रजनन ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग- पाचन तंत्र, नाड़ी तंत्र, यकृत, तिल्ली, आँतें, मल मूत्र अंग, प्रजनन अंग एवं गुर्दे। 26. ज्ञानम् मुद्रा
ज्ञान शब्द आत्मबोध, सत्य प्रतीति, यथार्थज्ञान, आत्मज्ञान का सूचक है।
प्रस्तुत प्रसंग में यह मुद्रा इस रहस्य को उद्घाटित करती है कि गायत्री जाप के द्वारा साधक को जो यथार्थ अनुभूति हुई है उसे वह स्वयं में अवधारित करना चाहता है, ज्ञान मुद्रा से अभीष्ट भावों को शीघ्रमेव पूर्ण किया जा सकता है।
योगतंत्र मुद्रा विज्ञान में यह मुद्रा श्रद्धालुओं द्वारा की जाती है। गायत्री की 32 मुद्राओं में से एक है। यह नामानुरूप मस्तिष्क शक्ति को बढ़ाती है।
विधि
__दाहिने हाथ को ऊपर की ओर उठाते हुए, अंगूठा एवं तर्जनी के अग्रभागों को परस्पर योजित करें, शेष अंगुलियों को एक-दूसरे से पृथक रखते हुए एवं आकाश की तरफ ऊपर उठाते हुए ढीला छोड़ने पर ज्ञान मुद्रा बनती है।27