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गायत्री जाप साधना एवं सन्ध्या कर्मादि में उपयोगी मुद्राओं... ...169
बानम् मुद्रा लाभ
चक्र- सहस्रार, आज्ञा एवं अनाहत चक्र तत्त्व- आकाश एवं वायु तत्त्व केन्द्र- ज्ञान, ज्योति एवं आनंद केन्द्र ग्रन्थि- पीयूष, पिनियल एवं थायमस ग्रन्थि विशेष प्रभावित अंग- मस्तिष्क, आँखें, स्नायु तंत्र, हृदय, फेफड़ें एवं रक्त संचरण तंत्र। 27. वैराग्य मुद्रा
संसार से विरक्ति होना वैराग्य कहलाता है। शास्त्रीय परिभाषा के अनुसार मन की वह वृत्ति जिसके प्रभाव से सांसारिक भौतिक सम्पदाएँ एवं विषय वासनाएँ तुच्छ प्रतीत हो उसे वैराग्य कहा जाता है।
गायत्री जाप की मुद्राओं के अन्तर्गत ज्ञान मुद्रा के पश्चात वैराग्य मुद्रा दिखाने का प्रयोजन यह है कि जब साधक ज्ञान मुद्रा के माध्यम से सत्य स्वरूप को पहचान लेता है तब उसके मन में संसार विरक्ति का भाव स्वतः जागृत हो उठता है। इस मुद्रा के माध्यम से वैराग्यमयी स्थिति को परिपुष्ट किया जाता है।